Tuesday, November 14, 2017

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Date 31/3/2017

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हम भारतीय लोगो की एक अलग सोच होती है ,खास कर बच्चों को लेकर । हम बच्चों को ऐसे कंडीशन करते है जैसे उनके बड़े हो जाने के बाद उन्हें म्यूजियम में रखने वाले हो , और लोगो को दिखाने वाले हो की देखो आइडियल बच्चे ऐसे होते है , और बड़े होकर वो ऐसे दिखते है , इतने सफल होते है । हमारे हर फैसले हमारे माँ बाप तय करते है , किस से दोस्ती करना है किस से नहीं । कैसे रहना है , क्या पहनना है , ऐसा कर लिया तो लोग क्या कहेंगे , वैसा कर लिया तो लोग क्या कहेंगे । और धीरे धीरे बच्चा अपनी इमेज बनाने में लग जाता है , और उससे पता चले बिना ही वो इस इमेज की गिरफ़्त में बंध जाता है । और एक बार इमेज के जाल में फसे तो बहार निकल पाना मुमकिन नहीं हो पता । बच्चा इमेज मेन्टेन करने के चक्कर में खुद को धोका देते रहता है । सारी ज़िन्दगी पर्सनालिटी और आइडेंटिटी मैच नहीं कर पाती । ज़िन्दगी मौका देती है कभी ब्रेक फ्री होने का लेकिन फिर इमेज का जाल आ जाता है । कोशिश करिये की अपने बच्चे को किसी भी इमेज में ना बंधे । उन्हें गिरने दे , खुद से संभल ने दे । खुद से दोस्त बनाने दे , नए नए अनुभव लेने दे । बच्चे में रिस्क टेकिंग कैपेबिलिटी आने दे, उनके सही गलत का फैसला उन्हें ही करने दे ।
माना की ये सब करने देने से वो एक आइडियल बच्चा ना बन पाये , हाँ पर ये बात जरूर है की वो एक ऐसा इंसान बन पाएगा जो खुद के फैसले ले सके , उसके विचारो में क्लैरिटी रहेगी , उससे पता होगा उसे ज़िन्दगी में करना क्या है । वो किसी भी सिचुएशन में दुनिया से लड़ सकेगा , खुद में घुटता नहीं रहेगा । एक साँचे में ढली ज़िन्दगी से ऊपर उठ कर एक बेहतरीन इंसान बन पाएगा । @राज

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