Thursday, March 27, 2014

क्यूँ

" जाते जाते आख़री बार उस ने मुझसे मिलना मुनासिब न समझा
मैंने भी सिर्फ एक सवाल किया " क्यूँ "
और उसने उस क्यूँ का जवाब देना भी मुनासिब ना समझा "

इश्क़ का इंद्रधनुष

"उसने इश्क़ का इंद्रधनुष दिखला कर कारी बदली कि सौगात भेंट कर दी
और मैं ता ऊमर उस कारी बदली में भीगता रहा सूखता रहा कुछ और न कर सका "

Monday, March 10, 2014

इश्क़ कि बारिश

" मेरे जीवन कि तपती धूप में आप काली घटाओं कि बदली है
जब कभी मैं तपता हूँ आप मुझे अपनी इश्क़ कि बारिश से भिगाती है
मैं भीगता हूँ गिला होता हूँ कभी सूखता नहीं
अजीब है ये आप के इश्क़ का पानी मेरा बदन छोड़ता ही नहीं
कितना भी सुखाने कि कोशिश करता हूँ सूखता नहीं
ये आप के इश्क़ का पानी अपना रंग छोड़ता नहीं "

Saturday, March 1, 2014

वो आप है

जिस के चेहरे पे हमेशा हंसी देखना चाहता हूँ वो आप है
​जिस कि आँखों में कभी आंसू नहीं देखना चाहता वो आप है
जिस के लिए सारी रात सोच के ग़ज़ल लिखता हूँ वो आप है
​जिस को सात जनम के लिए अपनी धर्मपत्नी मान लिया है वो आप है
जिस कि ख़ुशी के लिए दुनिया कि किसी भी हद तक जा सकता हूँ वो आप है
जिस के साथ साथ ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ वो आप है
जिस को जनम जन्मांतर के लिए अपना मान लिया है वो आप है
जिस कि गोद में हर रात सिर रख के सोना चाहता हूँ वो आप है
जिस को अपनी हर थाली का पहला निवाला खिलाना चाहता हूँ वो आप है
जिस को हर रोज़ नींद से उठने पे सबसे पहले देखना चाहता हूँ वो आप है
जिस के लिए ये ज़िंदगी जीना चाहता हूँ वो आप है सिर्फ आप