Tuesday, February 9, 2016

कुछ ख्याल

तुम से कहा बहुत बार तुमने माना एक बार नहीं, वक़्त तुम्हारे पास था तुम्हारे साथ था । मेरा वक़्त रेत की तरह मेरे हाथो से फिसल रहा था , मैं ज़िन्दगी को कुछ ऐसे जी रहा था जैसे हर दिन मेरा आखिरी हो , मेरी हर सरकती साँसों में बस तुम्हारे लिए ये पैग़ाम था की मैं तुमसे मोह्बत करता हूँ बेइंतेहा मोह्बत । मैं तुम्हे यकीन नहीं दिला रहा था बस अपने दिल के आखिरी पन्नो में भी तुम्हारे लिए अपनी मोह्बत को अमर कर रहा था । कुछ अधूरा था क्या मेरी इबादत में जो हम मिल ना सके या फिर सच्चे इश्क़ की यही मंज़िल होती है ये सब अब कुछ ठीक से कह नहीं सकता , आज मंज़िल की नहीं बस मैं राह की फ़िक्र में था ।
तुम्हारे लिए मोहबत भरी इन राहो का मैं जी भर लुफ्त उठा रहा था ,ऐसी राहें जहां मुझे कुछ साबित नहीं करना था ,सिर्फ चलते जाना था । सच कहूँ तो इसका कुछ अलग ही मज़ा था ,एक नया अनुभव था । अब तक मेरा ज़ोर मोह्बत में शिदत को था ,पर जाना की मोहबत में शिदत से ज्यादा रवानगी का होना जरुरी है । तुमसे इस मोहबत के सफ़र में बहुत कुछ सीखा बहुत कुछ जाना खुद के बारें में भी ,पहले से एक बेहतर इंसान बना । जानता नहीं मेरी इस शिदत को इस रवानगी को दुनिया कैसे आंकेगी ,हो सकता है कुछ लोग मुझे नाकाम आशिक़ भी कहे । लेकिन ये भी दावे से कह सकता हूँ की मैं मोह्बत की एक नयी मिसाल छोड़ के जाऊंगा ।
जीते जीते ना सही मर कर ही सही मेरी मोह्बत को एक मुक़म्मल अंजाम दे जाऊंगा ,मेरी हस्ती कुछ ना सही पर तुम्हारे लिए मोह्बत का एक नया शिखर छोड़ जाँऊगा ।