Wednesday, November 28, 2012

तेरा लिखा वोही एक शब्द

तेरे इतना कहने से मैंने फिर जिंदा हो गया
जाने कितनी बार तेरा लिखा वोही एक शब्द पढता रहा
जितनी बार पड़ा हर बार लगा जैसे एक नयी सांस मिल गयी हो मुझे
एक नयी शक्ति का जैसे संचार हुआ पुरे शरीर में
तेरे लिखे एक शब्द से ये हाल है सोचता हूँ जिस दिन तेरा पूरा कलाम आएगा
उस दिन तो पूरी दुनिया मेरे कदमो में होगी और ये आसमान मेरे आगे शीश नवाए खड़ा होगा
इस ब्रम्हांड के पुरे फलक पे बस तेरे और मेरे नाम का कीर्तिमान होगा

शब्द

मैंने खुद नहीं जनता ये शब्द कहाँ से आ जाते है
जब भी तुझे सोचता हूँ जब भी कभी तुझे से कुछ कहना चाहता हूँ
परस्पर दिल से निकल आते है सायद और बहुत कुछ है तुझ से कहने के लिए
आप खुश हो जाती हो ये पड़ कर इस से बड़ी तसली मेरे लिए और क्या हो सकती है
जब से आप को देखा था कोशिश भी तो यही की थी की हमेशा आप को खुश रख सकू
मैंने तो हमेशा बस आप की एक मुस्कराहट का दीवाना था
आज दूर हो कर आप कैसी हंसती होंगी यही सोच मेरी दीवानगी फिर बढ जाती है

थाह और अथाह

आप से जितनी मोहब्त है उस को नापने का पैमाना अभी तक मुझे मिल नहीं पाया है
या फिर ये भी कह सकता हूँ की मैंने खोजने की कोशिश ही नहीं की
क्यूँ की इस सत्य से मैं बखूबी वाकिफ था की
जिस मोहबत की थाह मिल जाये वो मोहबत तो मैं जनता नहीं
मैंने तो हमेशा आप से अथाह मोहबत की है।

Tuesday, November 27, 2012

कुछ पन्तियाँ

तुझसे मोहब्त ही नहीं की थी
अब मैं तुझे अपनी ज़िन्दगी मान चला था
तेरा इस कदर मेरी ज़िन्दगी से रूठ कर चले जाना
मुझे बेचैन कर रहा रहा है


तुझ से गले लग ने का एहसास आज भी है
तेरे लबो की मिठास का स्वाद आज भी मेरे लबो पे है
तुझ से दुरी कितनी भी सही
तुझ से मोहबत बरक़रार आज भी है

Monday, November 5, 2012

रोज़ मर मर के जी लेता हूँ फिर जी जी के मरता रहता हूँ

अब तो लगता है जैसे दम ही घुट जाये गा
आत्मा भी सांस लेने के लिए करहरा रही है
आंसू आँखों तक आते आते पानी खो देते है
दिल की जगह पे लगता है कोई पत्थर पड़ा हो
धडकता ही नहीं
अन्दर जो इंसानियत थी उस का क़त्ल हो गया है
बहुत पहेल ही शायद
जिस से भी मिलता हूँ वो अपनापन दे कुछ एहसान कर जाता है
जाने कितने एहसानों के बोझ के निचे दबा हूँ
सुन ने समझने की शक्ति भी चली गयी है अब तो
या फिर समझने की कोशिश नहीं करता हूँ
नज़र के सामने का अच्छा बुरा नज़र नहीं आता है अब
जाने कितने बरसो से कोई हलचल नहीं हुई इन में
मशीन के सामने बैठ बैठ मानव से मशीन बन गया हूँ
जीवित लोगो से सवांद कर ने की छमता खो चूका हूँ
निर्जीव वस्तू से बात करने में महारत हासिल कर चूका हूँ
दिल की भावनाए भी मशीनो से कहना सिख गया हूँ
किसी जगह हो कर भी उस जगह पे रहता नहीं
जिस जगह पे होता हूँ वो जगह कहीं मिलती नहीं
रोज़ मर मर के जी लेता हूँ फिर जी जी के मरता रहता हूँ
यही होती है शायद सफलता की कीमत जो आज मैंने चूका रहा हूँ
कभी जिंदादिल था आज सिर्फ जिंदा हूँ

चाय की चुस्कियो में

चाय की चुस्कियो में तेरा ज़िक्र आता है
हर चुस्की में तेरे शब्दों तेरी खुशबू का स्वाद आता है
हर उठते भाप पे तेरे चेहरे का कोई नया रंग निकल आता है
हर चाय का कप अपने साथ तेरी बातें तेरी यादें
न जाने कितने जीवन के दर्शन साथ ले कर आता है
जब भी चाय का कप हाथो में लेता हूँ
मेरी उँगलियों को थामे तुम्हारा हाथ दिखाई देता है
लगता है जैसे तुम मेरा हाथ थम बालकनी से कहीं बहुत दूर लेकर जा रही हो
बिलकुल एक चलचित्र की तरह नज़र आता है
अब इसे अतिशयोक्ति कहो या फिर कुछ और
हर चाय के कप में मुझे मेरा भूत वर्तमान और भविष्य नज़र आता है

Friday, November 2, 2012

सिलसिले

सिलसिले तो अभी भी थे तेरे और मेरे दरमियान
पर ये भी हकीक़त है की वो सिर्फ मुझ तक ही सीमित हो गए थे
अब उन सिलसिलो से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं था
यूँ तो मैंने भी चाहता था की मेरा भी कोई नाता रहे अब उन सिलसिलो से
दिखने दिखाने के लिए यूँ तो मैंने भी सारे सिलसिले तोड़ लिए थे तुमसे
पर दिल की गहराइयों में पैठ बना चुके उन सिलसिलो से मैंने निजात पा ना सका हूँ अब तक ये भी एक सचाई है
वक़्त के साथ न जाने कितने और सिलसिले अपना वजूद खो चुके है
पर तुम से क्यूँ अब तक ये बरकरार है इस का जवाब मैंने खुद भी खोज रहा हूँ
हर बार वोही एक जवाब मिल पता है इतनी मेहनत के बाद की मेरा और तुम्हारा सिलसिला है ही ऐसा
जो भुलाये नहीं भूलता मिटाए नहीं मिटता
एक आग की चिंगारी है दिल के एक बड़े भाग में जो समय की धार में भी बुझाये नहीं बुझती
शायद यही एक फर्क है तुम में और मुझे में तुम सब कुछ भूल के आगे निकल गयी
और मैंने कुछ न भूल के तुम्हारे पीछे चलता रहा

Thursday, November 1, 2012

रोज़ कुछ न कुछ नए तरीके खोज लेता हूँ

आज भी जब कभी आप के हाथो से खाना खाने का मन होता है
छुरी कांटे छोड़ मैं अपने हाथो से खाना खा लेता हूँ
जब कभी आपकी मीठी लोरी कहानियो की याद आती है
खुद को थपकी दे सुला लेता हूँ जब कभी आप की शाम की आरती की आवाज़ को सुन ने का दिल करता है
मैं वापस अपने बचपन के सुनहरे काल में पहुच जाता हूँ
जन्हा सुबह शाम आप की आरती के मीठे बोल मेरे कानो पे पड़ते है
जब कभी आप को साकछात नमन करने का मन करता है
मैं दुर्गा माँ को नमन कर लेता हूँ
यूँ तो हमेशा आप की कमी मेहसूस करता हूँ
पर यूँ ही खुद को बहलाने के लिए आप को अपने पास महसूस करने के लिए
रोज़ कुछ न कुछ नए तरीके खोज लेता हूँ