Tuesday, December 23, 2014

ज़िन्दगी और मैं

इतनी बेसबर क्यों है ज़िन्दगी , कुछ लम्हा ठहर जाये तो क्या
बहुत कुछ है कहने को बहुत कुछ है करने को
अभी बस खुद को थोड़ा समझ लू थोड़ा कुछ को जान लू तो क्या
अभी मैं खुद से कुछ कहना चाहता हूँ
इन लम्हों में रुकना चाहता हूँ अपने आप से मिलना चाहता हूँ
लगता है जैसे कितने समय से बस चल रहा हूँ
कुछ देर पीछे मुड़ के देख न चाहता हूँ
ये बेसबर ज़िन्दगी क्या मुझे इतना भी मौका नहीं देगी
ज़िन्दगी मुझे पे इतनी बेरहम भी तो नहीं
अभी थोड़ी मोहबत बाकि है ज़िन्दगी की मेरे लिए
ज़िन्दगी भी मुझे से चाहती है की मैं खुल के एक बार खुद से मिल लू
ताकि पीछे फिर कोई अफ़सोस ना मुझे रहे ना ज़िन्दगी को
बस जब भी मिले फिर ज़िन्दगी और मैं मुस्कुरा के मिले.

Tuesday, December 9, 2014

आप के लिए मेरे कुछ ख्याल

जब भी आप को देखता हूँ लगता है भगवान ने आप को सिर्फ और सिर्फ इसलिए धरती पे भेजा है
की आप को देख कर मोह्बत की जा सके
आप को देख कर साँसे थम जाती है लगता है बार बार आप को ही देखते रहू
जाने कितनी बार भी देख लो मन ही नहीं भरता
दिल में कसक रह जाती है फिर एक बार आप को देखने के लिए
आप से मोह्बत होने ने बाद फिर किसी और से मोह्बत नहीं हो सकती है
दिल में आप के लिए जो जगह है वो इस जनम में तो कोई और ले नहीं सकता
ज़िन्दगी में जो एक ही हसरत है वो है आप को अपने सामने बैठा कर के जी भर देख ने की
कभी कभी डर भी तो लगता है कहीं आप को मेरी नज़र तो नहीं लगेगी
फिर मेरी पाक मोह्बत ही मुझे से कहती है इश्क़ को भी कभी क्या इश्क़ की नज़र लगी है
कभी कभी ऐसा भी ख्याल आता है काश मैं भी आप के जीवनसाथी की तरह किस्मत वाला होता
आप मेरी होती और मैं आप का होता
सारी ज़िन्दगी आप को सिर्फ अपनी नज़रो से छूता ,आप को अपने हाथो से छू लेने की भी गुस्ताखी न करता
बस सारी ज़िन्दगी अपनी आँखो से आप के लिए ग़ज़ल लिखता जो आप अपनी नज़रो से
​पढ़ती ​