Sunday, October 28, 2012

ये मन

ये मन कहीं ठहरता नहीं कहीं रुकता नहीं
जाने ऐसा क्या खोया है इसका जो कहीं मिलता नहीं
कहीं भी कभी भी राहत नहीं है
बस तेरा नाम सुन के थम जाता है
दिल पे हाथ रख लेता है, यूँ तो आवारा है ये
जाने को कहीं भी जा सकता है पर जाने क्यूँ
तेरे ही गुरुत्वाकर्षण की परिधि में भटकता रहता है

Monday, October 22, 2012

Journey

Again I am on a journey It's a journey of self discovery,
Nobody is with me nor I have any companion
Still I am not single,nor feeling alone
because I am with my inner self which is the best company
I hoped and missed so far in my life.
During this self discovery journey I realized that I am covered with lots of dirt,
which has not only polluted my mind but also my soul
Now I am on a mission that I have to clean my inner soul,
my inner self
I know It's an uphill task
But I have the faith and courage that as I will keep walking on this
Dirt will eventually leave my soul
and I will attain the serenity which I have been searching for so long

Saturday, October 20, 2012

फिर कुछ ख्याल

तुम को जाते हुए देख दिल किया तुम को वापस पुकार लू
फिर सोचा जो तुम को वापस आना ही होता तो तुम जाती ही क्यूँ
कई बार यूँ भी हुआ खुद से ही खुद की मोहबत को ले कर तकरार भी हुई
हर तकरार के बाद कुछ आंसू छलका लिए थोड़ी देर तनहा रह लिए
फिर तेरी मोहबत को सीने में लिए खुद को तेरे लिए काबिल साबित करने चल निकले
कई सारे सवाल है जीन के जवाब आज भी ढूँड रहे है
क्यूँ आज भी तुम्हारे लिए मोहबत है मेरे सीने में
क्यूँ तुम को आवाज़ देता हूँ तन्हाई में
जानता हूँ तुम अब कभी नहीं आओगी
शायद ये भी दिल को पता है की अब तुम से कभी आमना सामना न हो पाए
पर शायद मैंने भी बेबस हूँ मेरी मोहबत की दीवानगी के आगे
जाने क्यूँ आज तक उस जगह पे किसी और को काबीज नहीं करा पाया जिस जगह पे तुम थी मेरे दिल में
खुद में ही सोचता हूँ ऐसी क्या बात थी तुम में
ऐसी भी क्या मोहबत थी तुम्हारे लिए
जो तुम को हर दम अपने पास मेहसूस करता हूँ
तुम्हारी पाजेब ( पायल ) की छन छनाहट बहुत शोर में भी सुन लेता हूँ
तुम्हारी महक हर वक़्त आँखों में सांसो में मेहसूस करता हूँ
तुम अगर पास होती तो तुम से ही पूछ लेता ये जो है मेरे और तुम्हारे दरमियाँ
एक तरफा ही सही इस को क्या नाम दू
ये मोहब्त तो नहीं मोहब्त भी इस के आगे बहुत छोटा शब्द लगता है
ये मोहबत से कहीं बहुत ऊपर जिस के लिए कोई नाम कोई शब्द अभी तक दुनिया की किसी शब्दावली में नहीं
जानता हूँ पुरे यकीं से कह सकता हूँ तुम्हारा भी यही जवाब होता

मैं और मेरी परछाई के बीच हर वक़्त तेरा साया है

मैं और मेरी परछाई के बीच हर वक़्त तेरा साया है
तुम मिलो दूर हो मुझ से पर मेरी आँखों में तुम्हारा ज़िक्र है
तुम्हारी जुदाई का दर्द आँखो में लिए है, तुम कहीं नज़रो से छलक न जाओ
आँख के पानी को दिल में समभाल के रखे हुए है

Wednesday, October 17, 2012

RESTLESS

I am restless, I don't whether it my mind or soul which is restless but I do accept I am restless.
I am doing all my duties with utter perfection still that feeling of being restless is always there
This permanent restless is not for some success or any materialistic thing
I am just figuring out the cause of being restless
My soul got restless when I saw an older woman working very hard for his two square meal in a road side eatery.
My mind go restless when I see the pathetic state of my Country
But one thing for sure I am restless because I am going through a soul over hauling process
Will surely come across many reasons and logic for being in a state of restless
But at the moment with a very true heart I do accept I m restless.

Monday, October 15, 2012

कैसे संभालू अपने दिल को

"कैसे संभालू अपने दिल को
हर बार तेरी तस्वीर फिर तुझ से
मोह्बत कर ने पे मजबूर कर देती है
जब भी दिल को तसली देता हूँ
फिर तेरी मोहबत का एहसास इसे बरगला जाती है "

Thursday, October 11, 2012

MANGO PEOPLE

हम को MANGO PEOPLE गन्दी नाली के कीड़े कहने वालो सुन लो ज़रा
अब वो दिन दूर नहीं जब हम अपने पैरो पे खड़े होंगे एक नयी उड़ान भर ने के लिए
उस वक़्त हो सकता वो तुम को गन्दी नालिया भी नसीब न होने दे अपना मुह छुपने के लिए
आज जिन के चलने का सहारा छिना है तुम लोगो ने सत्ता में मदमस्त हो कर
अभी भी वक़्त है कुछ संभल जाओ ऐसा भी क्या सत्ता का नशा
इतिहास गवाह है यहाँ रावण जैसे का गर्व मिट्टी में मिल गया

Saturday, October 6, 2012

बचपन की नासमझी तो पा नहीं सकता पर आज की समझदारी में भी कुछ नासमझी का प्रमाण रख सकू

बहेला फुसला के ज़िन्दगी हमे बचपन से समझदारी में ले आई
सुरुवाती सफ़र तो अच्छा था फिर ज़िन्दगी कुछ अपने रंग में आई
और फिर ज़िन्दगी हमे कुछ ऐसे रास्तो पे ले गयी
जन्हा न जाने कितनी दफे दिल टूटे न जाने कितने अपनों से मिल के बिछड़ गए
खुद के पैरो पे खड़े होते होते जाने कब वो अपने घर की देहलीज़ छुट गई
कभी भीड़ में तन्हाई खोजते रहे कभी तन्हाई भीड़ की कमी महसूस करा गई
दुनियादारी के नाम पे जाने ज़िन्दगी क्या क्या सिखाते चली गई
अब ज़िन्दगी के इस मोड़ पे पीछे पलट के देखता हूँ
तो वो नादान नासमझ बचपन हसंता मुस्कुराता मुझे अपनी और बुलाता है
पर अब मैंने जवाब्दारियों की बेडियो में में ऐसा जकड़ा हुआ हूँ
चाह कर भी वापस नहीं जा सकता पर कभी कभी कोशिश करता हूँ की
बचपन का वो निछल मन फिर पा सकू जिस में किसी के लिए कोई घृणा न हो
जिस किसी से भी मिलु बिना किसी फयदा नुक्सान के खुले दिल से मिलु
बचपन की नासमझी तो पा नहीं सकता पर आज की समझदारी में भी कुछ नासमझी का प्रमाण रख सकू

Thursday, October 4, 2012

फिर तेरे प्यार की बुनियाद पे अपना आशियाना बना ने चला था

फिर तेरे प्यार की बुनियाद पे अपना आशियाना बना ने चला था
फिर तेरे सायो से आपना वजूद बनाने चला था
फिर तेरे हर झूठ पे ऐतबार करने चला था
फिर तेरी हर बेवफाई को दरकिनार कर, तुझ से वफा करने चला था
जनता था तेरी हर एक अदा हर एक बात धोका है
मेरी मोहबत का ईमान बरक़रार रखने के लिए
फिर अपनी आबाद ज़िन्दगी को बर्बाद करने चला था