Monday, February 18, 2013

तुम को हँसता मुस्कुराता देख शायद मैं कुछ राहत महसूस कर सकू

कल अचानक तुम्हारी आप बीती का एहसास हुआ
तुम जिस प्रताड़ना से गुजरी
उस का कुछ रति भर दुःख मैंने महसूस किया
बहुत स्वार्थी था मैं जो तुम से अलग हो के सिर्फ अपने बारें में ही सोचता रहा
कभी तुम्हारे दृष्टिकोण से उस चीज़ को नहीं दिख पाया
मुझे तो सिर्फ तुम से जुदा होने का गम रहा
पर तुम ने जो सहा तुम जिस दौर से गुज़री
अपनी आंधी मोह्बत की सड़को पर दौड़ते दौड़ते कभी उस जगह ठहर नहीं पाया
कहने को तुम्हारे बैगर बुरा समय मैंने भी देखा
पर वो तुम्हारे बुरे समय के आगे न के बराबर थे
तुम अगर नरक में जल रही थी तो मैं नरक के द्वार पर खड़ा था
यूँ तो ये मेरी इक तरफा मोहबत है पर मोहबत के उसूल जिस में सब से पहले तुम्हारी ख़ुशी आती है
उस उसूल में बंधा हुआ हूँ मैं , बस उसी मोहबत के वास्ते तुम से ये कहना ये चाहता हूँ
तुम्हारी एक हंसी के लिए आज भी दुआए होती है
हो सके तो पुराना समय भूल के खिलखिला के मुस्कुरा दो
तुम को हँसता मुस्कुराता देख शायद मैं कुछ राहत महसूस कर सकू

Monday, February 11, 2013

तुम मिलोगी तो ये देखो गी कैसे तुम्हारी आस पे ये बुत कायम है

अब जो की तुम नहीं हो मेरी ज़िन्दगी में
मुझ को मेरे अन्दर का इंसान भी गुमशुदा सा लगता है
जिसे ढूँढ ने की कोशिश में में न चाहते हुए भी हर उस महफ़िल का हिस्सा बन जाता हूँ
जिस की बातो का मुझ से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं
सब हसंते खिखिलाते है मैं भी बुत बने रहता हूँ
महफ़िल में सब अपना दोस्त समझते है मुझ को पर कोई इंसान नहीं समझता
रोज़ खुद से कई सारे सवाल करता हूँ की क्यूँ हूँ मैं इन महफ़िलो का हिस्सा
पर कोई जवाब नहीं मिलता
मैं भी शायद इस आस पे महफ़िलो में चला जाता हूँ
की कहीं किसी महफ़िल में तुम नज़र आ जाओ
तुम्हारी नज़रो की संजीवनी मुझ को मिल जाये
और फिर ये बुत एक जिंदा इंसान में बदल जाये
कहते है आस पे दुनिया कायम है
तुम मिलोगी तो ये देखो गी कैसे तुम्हारी आस पे ये बुत कायम है