Monday, February 11, 2013

तुम मिलोगी तो ये देखो गी कैसे तुम्हारी आस पे ये बुत कायम है

अब जो की तुम नहीं हो मेरी ज़िन्दगी में
मुझ को मेरे अन्दर का इंसान भी गुमशुदा सा लगता है
जिसे ढूँढ ने की कोशिश में में न चाहते हुए भी हर उस महफ़िल का हिस्सा बन जाता हूँ
जिस की बातो का मुझ से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं
सब हसंते खिखिलाते है मैं भी बुत बने रहता हूँ
महफ़िल में सब अपना दोस्त समझते है मुझ को पर कोई इंसान नहीं समझता
रोज़ खुद से कई सारे सवाल करता हूँ की क्यूँ हूँ मैं इन महफ़िलो का हिस्सा
पर कोई जवाब नहीं मिलता
मैं भी शायद इस आस पे महफ़िलो में चला जाता हूँ
की कहीं किसी महफ़िल में तुम नज़र आ जाओ
तुम्हारी नज़रो की संजीवनी मुझ को मिल जाये
और फिर ये बुत एक जिंदा इंसान में बदल जाये
कहते है आस पे दुनिया कायम है
तुम मिलोगी तो ये देखो गी कैसे तुम्हारी आस पे ये बुत कायम है

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