Sunday, August 25, 2013

फिर तेरे शहर तेरी गलियों से गुजर लौटा था

फिर तेरे शहर तेरी गलियों से गुजर लौटा था

तेरी गलियों की धुल जिस ने कभी तुझे छुआ था उस से अपने सीने में समेटे हुए लौटा था

तेरे शहर की हवाओ से तेरी महक चुरा के लौटा था

तेरे शहर से तेरी एक झलक अपनी आँखों अपने तस्वुर में बसा के लौटा था

तेरे शहर तेरी गलियों से अपनी मोह्बत के किस्से कानो पे रख ले लौटा था

लौटते लौटते अपना दिल तेरे दर पे छोड़ आया था

हो सके तो अपनी कुछ खाई हुई कसमें याद कर लेना ,

तुम्हारे दर पे रख हुए तनहा दिल को उस के दिल से मिला देना

इसे मेरी इंतेज़ा समझ पूरा कर देना

क्यूँ की मैं अभी अभी तेरी मेरी उस दीवानी मोह्बत की रवानगी के दौर से होकर लौटा था !