Tuesday, May 20, 2014

अकस्मात

अकस्मात ही हुई थी मेरी और तुम्हारी मुलाक़ात
जो एक सिलसिले में बदल गयी
सिलसिला भी ऐसा की ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन गया
हर हिस्सा एक कहानी सा लगता है
जिस को अपने मानसपटल में बार बार देखता हूँ
ये कोशिश बेवज़ह नहीं है , ये एक मौका दे जाती है वर्तमान में
तुम्हारे साथ गुज़रे लम्हो को फिर से जीने लेने का
इस तपती जीवन की धुप में तुम्हारा ओस जैसा एहसास फिर से महसूस करने का
जीवन के कड़वे अनुभव के साथ गुलकंद जैसी तुम्हारी बातों की मिठास का स्वाद लेने का
आज के इस तकनीकी प्यार के दौर में रूहानी मोह्बत के अस्तित्व में होने का
इस भटकाव इस अकेलेपन में तुम्हारे निरंतर साथ होने का