Wednesday, October 23, 2013

अमानत

जाते जाते वो अपनी सारी अमानत समेट रही थी
मैं स्तब्ध सा देखता रहा , जाने फिर क्या सूझा उसे
की पलट के मुझ से पूछा की उस का कुछ रह गया है क्या मेरे पास
मैं भी क्या कहता उससे उस की तो न जाने कितनी चीज़े रखी हुई थी मेरे पास
उस की बचपन की वो टूटी हुई पायल ,
किताब कापियो के वो पन्ने जिस पर उसका और मेरा नाम लिखा था उस ने
उस के आंसुओ से भीगे हुए कुछ गिले रुमाल
होली का वो गुलाल जो उस ने मेरे गालो पे लगाया था
कुछ मिठाई के टुकड़े जो हम दोनों ने मिले के चुराए थे
कुछ टॉफियो के रेपर
कुछ सूखे हुए न जाने कितने फूल भी है
और भी बहुत कुछ है जो सहेज के रखा हुआ है
शायद उस को भी पता है ये सब लेकिन माँगा नहीं उस ने मुझसे
पर हाँ जाते जाते अपने आंसुओ से भीगा हुआ एक और रुमाल दे गई
अपनी एक और अमानत संभल के सहेज के रखने के लिये….