Sunday, August 18, 2019

अजीब कसमकश थी

अजीब कसमकश थी, एक लंबे अरसे की जुदाई के बाद मिलने की एक आस जागी थी ।
क्या कहूँ क्या करूँ, जाने क्या क्या करूँ,
पेट में तितलियों की अनगिनत गुदगुदी थी ।
तुमसे मिलने के समय कैसे खुद को रोक लू,
कैसे आँखों के समंदर को समेट लू
तुम्हारे लिए ऐसा क्या लेके जाऊ, की तुमको हमारा मिलना याद रह जाये ।
दिल की धड़कनों का सबब तो क्या कहे क्या था
लग रहा था समय जैसे फिर 20 साल पहले चले गया है
हम शेखभाई की टपरी पे स्कोटी पे आती मेरी पूनम का थामे दिल से इंतज़ार कर रहे है ।
जाने कितने सवाल जवाब, भावनाओं के उठते तूफान
सब जैसे तैसे समेत आप के सामने आए थे ।
कितना कुछ था आप से कहने के लिए, आप से सुनने के लिए, जी चाह रहा था आप को सीने से लगा ले, आप की खुश्बू को खुद में क़ैद कर ले ।
पर कुछ ना कर सके, बस आप को जी भर देखते रह गए, दिल के नमक को आँखों के पानी में घोल के पी गए ।
आप के सीने से लग जाते तो खुद को रोक पाना मुमकिन ना होता, इतने बरसों की तड़प, इतने बरसों का इंतज़ार , ज्वालामुखी जीवित हो गया होता ।
कुछ कसक रह गयी, कुछ सुकून मिला ।
आप की खुश्बू को अपने हाथों की हथेलियों में समेट ले जा रहा था, आप की वो आंखे ,
आप का अंदाज़ ऐ बयान ,आप की हंसी , आप के हाथों की उँगलियाँ अपने जेहन के एक हिस्से में संभाल के सहेज रहा था ।
तुम्हारे पास बैठे होने का एहसास, तुम्हे छू लेने का एहसास, जाने कितने एहसासों का पिटारा बांध रहा था ।
पूनम के लिए मैं मस्त मलंग ही तो था, जो सदियों को कुछ पल में जी रहा था। माना जो कहना था कह ना पाया, सीने से लग ना पाया, पर इन पलकों को फिर कुछ सपनों का आधार मिल गया ।
रिश्ता कोई क्या समझता तेरा मेरा और मैं क्या ही समझा पता, रिश्ता एक सच्ची मोहबत का था, जाने कितने बरसों की इश्क़ की अनकही दास्तान थी , जहां राजू की पूनम थी और पूनम का राजू ।

एक दूसरे से जुदा होकर दोनों ने खुद को पा लिया था

हम दोनों खड़े थे दरवाज़े के चौखट पे, आंखों में आँशु लिए, गले में वो शब्द लिए जो कह नही सकते थे एक दूसरे से ।
कितनी अजीब जगह मिल रहे थे हम दोनों, शायद वो चौखट ही हमारी ज़िंदगी को बयां कर रही थी ,
हम दोनों भी तो चौखट के दो हिस्से ही थे,जो कभी मिल नही सकते थे,बस एक दूसरे को देख सकते थे ,
अपने अपने हिस्से से एक दरवाज़े की सारी जिम्मेदारी संभाल रहे थे । दिल का जो दर्द था वो गले में रुंध गया था,
आंखों से जो बह रहा था वो गले में रुंधे शब्दों को बाहर निकल ने से रोक रहा था।
बहुत कुछ हो सकता था, कहा सुना जा सकता था , पर दोनों ने आंखों में दिल का नमक रख लिया और चुपचाप सिसकते रहे ।
दोनों सारी जिंदगी एक दूसरे का दर्द लिए जीते रहे,एक दूसरे के लिए मरते रहे। दोनों चैन से जी ना सके,तड़पते रहे,तरसते रहे ।
बैरागी से थे दोनों संसार में रहते रहते बैराग खोज लिए थे । खुद में खुद हंसते थे,खुद में खुद रोते थे और खुद को खुद समझ बुझा लेते थे ।
दुनिया में हो के भी दुनिया की ज़रूरत नही थी | एक दूसरे से जुदा होकर दोनों ने खुद को पा लिया था ।