Thursday, January 30, 2020

तेरा मेरे इश्क़ से रूबरू होना

तेरा सबसे जुदा खड़े रहने का अंदाज़
जैसे तिलस्म से किसी पत्थर को तराश देना
तेरे होंठो पे हल्की मुस्कान लाने की अदा
जैसे छोटे बच्चे का चुपके से कोई मिठाई खाना
संपर्क का कोई उपग्रह,जैसे तेरे कानों की बालियाँ
तेरा गुलाबी रंग की साड़ी में चले के आना
जैसे सरसों के खेतों में हवा का सरसरना
तेरे हाथों की मेहंदी का महकना
जैसे मंदिर में धूपबत्ती की खुसबू बिखर जाना
तेरे खुले बालों के साये में आना
जैसे उजले चाँद के साथ गहरी रात का आना
तेरे प्यारे से चेहरे पे तेरी गहरी आँखों का होना
जैसे बहुत सारी सीपों में किसी मोती का मिल जाना
तेरी कलाइ में कंगन का यूँ ठहर जाना
जैसे आसमान में तारों का एकत्रित हो जाना
तेरी उंगलियों में अंगूठीयो का होना
जैसे पुस्तैनी ख़ज़ाने का दिख जाना
तेरे माथे पे छोटी लाल बिंदी का होना
जैसे दौड़ती जिंदगी को कुछ पल रुकने का इशारा किया जाना ।
तेरा मेरे इश्क़ से रूबरू होना
जैसे बेहद खूबसूरत लालगुलाब का पंखुरियों पे ओस की बूँद लिए खिल जाना ।

इज़हार इंकार का खेल

चलो बहुत हुआ इज़हार इंकार का खेल
अब कुछ ना कहने में ही सुकून है ।
इतना कहने सुनने पर भी तुम वो समझ ना सकी
जो मैं तुम्हें महसूस करवाना चाहता था।
तुम वो ना कह सकी जो मैं सुनना चाहता ।
तुममें और मुझमें सदियों का फासला था।
मेरी कल्पनाओं और यथार्थ में बहुत फर्क था।
रोज़ एक ही सवाल का जवाब खोजता रहा
की मैं कँहा गलत था ।
इश्क़ करना गलत था या तुमसे कोई उम्मीद रखना
गलत था ।
हर एक भावना व्यक्त करना गलत था या घड़ी घड़ी तुम्हारी फिक्र करना गलत था ।
गलत अगर कुछ नहीं था तो फिर शायद ग्रह नक्षत्र का कोई फेर था।
सही गलत जो भी था, बस इतना तय था मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में दूर दूर तक शामिल नहीं था ।
महसूस करना,सुनना समझना सब अपनी जगह था,
पर मेरी तरफ से मेरा इश्क़ मुक़म्मल था।
अब खुद को अच्छे से समझा लिया था,तुम्हारे आश्वासन तोड़ आगे बढ़ चुका था।
तुम्हें खो देने के डर को अब जीत चुका था ।
तुम्हरी राह तकते तकते खुद की मंज़िल चुन चुका था ।
तुम्हें पाने की कोशिश करते करते,मैं खुद को पा चुका था ।
तुम्हारे होने ना होने का अब कोई मलाल ना था,
मैं अपने इश्क़ पे फना हो मस्त मलंग हो चुका था ।

Tuesday, January 21, 2020

शिकायतें

शिकायतें बहुत है तुझसे ऐ ज़िन्दगी ,
बस खुद में वो अधिकार ला नहीं पाएं की तुझसे कोई सवाल करते
जो तूने दिया मुक़दर का हिस्सा मान रख लिया
जाने कितने आशुओँ का सैलाब दबाएँ बैठे है
कितनों को इन कंधों का आसरा था,
बस खुद के लिए कोई कंधा ढूंढ नहीं पाए |
अपने होंठों की हँसी भी हमने गिरवी रख दी
और तेरा तकाज़ा था ऐ ज़िन्दगी की उसको छुड़ा भी न पाएं |
कितनी दास्तानों को खुद में समेटे हुए है,खुद की कहानी कहें ज़माने हुए |
ऐ ज़िन्दगी तेरा अदब था हर जिम्मेदारी हर जवाबदारी को कसमों जैसे निभाते रहे |
जाने किस किस की कदर करते रहे, बस खुद को भरे बाज़ार नीलाम करते रहे |
सब का ख्याल रखा, खुद की बेख़याली को तोड़ ना पाएं |
कितना कुछ है तुझसे कहने सुनने को ऐ ज़िन्दगी
बस तूने कभी वक़्त दिया नहीं और हम तुझसे वक़्त मांग ना पाएं |

मेरे इश्क़ और तुम्हारे इश्क़ में फर्क

मेरे इश्क़ और तुम्हारे इश्क़ में फर्क बहुत था,
तुम इश्क़ के सागर की सतह पर थी ,
और मैंने तल को छू लिया था |
तुम्हारी नज़र अब भी दुनिया पर थी,
मुझे सिर्फ मेरी धड़कन और साँसें सुनाई देती थी |
मेरे और तुम्हारे अनुभव अलग अलग थे
तुम मेरे पास आना तो चाहती थी पर संसार में रहते हुए
और मैं विरक़्त शांत तल में तुम्हें महसूस कर रहा था |
तुम अब भी दुविधा में थी,मैंने सब दुविधा छोड़ दी थी |
तुम्हारी अपनी अलग मजबूरियां थी,
तुमसे इश्क़ करते ही मेरी सारी मजबूरियां काफूर थी |
सतह से तल की गहराई ही हमारे बीच की दुरी थी,
पर वही गहराई किसी खाई से कम ना थी |
नियति का ही खेल था हम दूसरे के पूरक थे
पर एक दूसरे के बिना अधूरे थे |
तुम मेरे साथ साथ,संसार को पाना चाहती थी,
मैंने तुमहारे साथ साथ खुद को पा लिया था |

Tuesday, January 14, 2020

एक सरकारी आवास को,अपना घर बनाया था

एक सरकारी आवास को,अपना घर बनाया था |
कुछ और से नहीं
दोस्ती,मोहबत और चाय के रंगों से सजाया था
सामान ज्यादा कुछ नहीं था पर दिल भरे थे
किसी के भी कमरे और दिल में ताले नहीं थे
सब कुछ खुला था, बे रोकटोक आते जाते थे |
सुख दुःख में सबने एक दूसरे को संभाला था |
जाने कितनी महफ़िलो को चाय की चुस्कियों और
ग़ज़लों से सजाया था |
बे सिरपैर की बातें, हँसी के ठहाके
हरदम हमारे साथ रहते थे |
प्यार भरी गालियों को दीवारों ने खुद में समेट रखा था |
शामें अक्सर रातें हो जाया करती थी ,
नींद आँखों में आ आ के दम तोड़ देती थी |
सुबह कुछ अलसाई सी होती ,
चाय हर किसी को बड़े से कप में चाहिए होती थी |
जिम्मेदारियाँ तो थी सब के ऊपर,
लेकिन उस घर में अलग ही बेफिक्री थी |
कहीं से भी थक हार के आते थे लेकिन
वो हम सब का अपना सुकून घर था |
सुना है अब वो आवास खाली है ,
फिर कोई गया नहीं वहाँ जो उसको घर बना सकता था |
दरों ओ दीवार में हमारे जैसे जो अपनापन भर सकता था |
एक सरकारी आवास था जिस को हमने आशियाना बनाया था,
दुनिया की भीड़ से जुदा होकर खुद की शख्सियत को पहचाना था |

Monday, January 13, 2020

तेरे मेरी मोहबत की कहानी

तेरे वादे पर हर बार एतेबार करना, फिर तेरा इंतज़ार करना,
तेरा हर बार दिलासा दे मुकर जाना,
मेरा खुद की नज़रो में पहले से और गिर जाना
फिर भी तुझसे वही टूट के मोहबत करना |
तुझे अपना सब कुछ मान लेना
और तेरे लिए मेरा होना ना होना
मेरे लिए नामुमकिन किसी और को चाहना
तेरे लिए आसान मुझे नज़रअंदाज़ करना
तेरा एक बार मुस्कुराना ,
मेरा फिर मोहबत की उन पथरीली गलियों में अकेले भटक जाना |
तेरा एक बार पास आके छू लेना ,
सही गलत सोच समझ से परे मेरा फिर तेरे इश्क़ में मलंग हो जाना |
बस इतनी तेरे मेरी मोहबत की कहानी ,
तेरे लिए बस एक फ़साना , मेरे लिए पूरी ज़िंदगानी |

तुमसे इश्क़,जैसे कोई गहरी साधना

तुम से दूर होना,जैसे दुःख दर्द वियोग की पराकाष्ठा को अपनी रग रग में अनुभव करना |
तुम्हारे कंधे पे सर रखना जैसे सारे दुःख दर्द वियोग का कोई तिलस्मी इलाज़ मिल जाना |
तुम्हारी गोद में चेहरे पर तुम्हारी चुनरी ओड लेना ,जैसे धरती और आसमान को एक साथ महसूस करना |
तुम्हारे हाथो का वो मख़मली एहसास, जैसे ओस की बूँद को छू लेना |
तुम्हारी वो महक ,जैसे सैकड़ों गुलाबों का इत्र |
तुम्हारे समीप होना, जैसे सुप्त और ज्वलंत ज्वालामुखी का एक साथ करीब होना |
तुम्हारी साँसों की आवाज़, जैसे बहती नदी की रवानगी |
तुम्हारी उँगलियों की वो अगूंठियाँ , जैसे किसी बेहतरीन कारीगर की कारीगिरी |
तुम्हारी आँखों की वो मादकता, जैसे पैमाने से मय का छलक जाना |
तुम्हारे होंठों की हलकी हँसी ,जैसे शांत सागर का किनारा |
तुम्हारी कमी के साथ जीना, जैसे जीवन में रोज़ कठिनाई का आना |
तुम्हारा हँस कर महसूस किये दर्द को छुपा लेना,जैसे एक परत के ऊपर दूसरी परत चढ़ा लेना |
तुम्हारी साँसो की गरमाहट,जैसे कड़ कड़ाती सर्द रातों में जलता अलाव |
तुमसे इश्क़,जैसे कोई गहरी साधना |