Tuesday, January 21, 2020

मेरे इश्क़ और तुम्हारे इश्क़ में फर्क

मेरे इश्क़ और तुम्हारे इश्क़ में फर्क बहुत था,
तुम इश्क़ के सागर की सतह पर थी ,
और मैंने तल को छू लिया था |
तुम्हारी नज़र अब भी दुनिया पर थी,
मुझे सिर्फ मेरी धड़कन और साँसें सुनाई देती थी |
मेरे और तुम्हारे अनुभव अलग अलग थे
तुम मेरे पास आना तो चाहती थी पर संसार में रहते हुए
और मैं विरक़्त शांत तल में तुम्हें महसूस कर रहा था |
तुम अब भी दुविधा में थी,मैंने सब दुविधा छोड़ दी थी |
तुम्हारी अपनी अलग मजबूरियां थी,
तुमसे इश्क़ करते ही मेरी सारी मजबूरियां काफूर थी |
सतह से तल की गहराई ही हमारे बीच की दुरी थी,
पर वही गहराई किसी खाई से कम ना थी |
नियति का ही खेल था हम दूसरे के पूरक थे
पर एक दूसरे के बिना अधूरे थे |
तुम मेरे साथ साथ,संसार को पाना चाहती थी,
मैंने तुमहारे साथ साथ खुद को पा लिया था |

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