Tuesday, January 21, 2020

शिकायतें

शिकायतें बहुत है तुझसे ऐ ज़िन्दगी ,
बस खुद में वो अधिकार ला नहीं पाएं की तुझसे कोई सवाल करते
जो तूने दिया मुक़दर का हिस्सा मान रख लिया
जाने कितने आशुओँ का सैलाब दबाएँ बैठे है
कितनों को इन कंधों का आसरा था,
बस खुद के लिए कोई कंधा ढूंढ नहीं पाए |
अपने होंठों की हँसी भी हमने गिरवी रख दी
और तेरा तकाज़ा था ऐ ज़िन्दगी की उसको छुड़ा भी न पाएं |
कितनी दास्तानों को खुद में समेटे हुए है,खुद की कहानी कहें ज़माने हुए |
ऐ ज़िन्दगी तेरा अदब था हर जिम्मेदारी हर जवाबदारी को कसमों जैसे निभाते रहे |
जाने किस किस की कदर करते रहे, बस खुद को भरे बाज़ार नीलाम करते रहे |
सब का ख्याल रखा, खुद की बेख़याली को तोड़ ना पाएं |
कितना कुछ है तुझसे कहने सुनने को ऐ ज़िन्दगी
बस तूने कभी वक़्त दिया नहीं और हम तुझसे वक़्त मांग ना पाएं |

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