Monday, September 16, 2013

घडी दो घडी

घडी दो घडी तो साथ चले थे घडी दो घडी और साथ चले ने की बात थी
घडी दो घडी में यूँ तो तुम्हारा कुछ ना बदलता बस मेरे कुछ खवाब हकीक़त बन जाते
ख्वाबो की फेह्रत यूँ तो बहुत लंबी थी पर एक खवाब था
तुम्हारी हथेलियों में अपने हाथो से मेंहदी रचाऊ
तुम्हारे पैरो में अपनी पसंद की पायल पहनाऊ, तुम्हारे हाथो में तीज की चूड़ियाँ पहनाऊ
रोज तुम्हारी मांग में सिंदूर लगाऊ, जो दिल के बहुत करीब था और अब भी है ।
खैर आज हकीक़त ये है की इन्ही अधूरे खवाबो से सजी हुई है मेरी ज़िन्दगी
तुम साथ न चली घडी तो घडी तो क्या
मैं इन्ही टूटे अधूरे खवाबो के साथ घडी तो घडी चल लेता हूँ
ताकी तुम से इन खवाबो को कभी कोई गिले सिक्वे न रहे