Tuesday, November 14, 2017

मैं ऐसी ईक शाम के इंतज़ार में हूँ

मैं उस शाम के इंतज़ार में हूँ, जब मैं और तुम किसी नदी के किनारे तन्हा बैठे हो,
तुम मेरे कंधे का सहरा लिए अपना सर मुझे टिकाये हुए हो,
हमारे हाथों की उंगलिया एक दूसरे को स्पर्श कर रही हो ।
ना तुम मुझसे कुछ कह रही हो , ना मैं तुम से कुछ कह रहा हूँ ।
बस हम दोनों के बीच एक सुकून हो , खामोशी हो , जहां लफ़्ज़ों की कोई गुंजाइश ना हो ।
बस जो थोडा शोर हो , हमारी धड़कनों का हो ।
जो खुसबु हो वो तुम्हारी साँसों से महकी हो ,
ये जो लम्हे हो वो ठहरे हो , शाम को जल्दी ना हो बीत जाने की ,
मैं ऐसी ईक शाम के इंतज़ार में हूँ ।

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