Saturday, March 30, 2019

कोई है नहीं जिस से कह सकु, इसलिए लिख रहा हूँ

Date : 29/11/2018

मैं दुनिया से खफा हूँ या दुनिया मुझसे, कुछ पता नहीं
बस एक नाराज़गी की लहर महसूस होती है हर जगह ।
कोई कुछ कहता नहीं, सब बनावटी सी बातें करते है,दिखावे के लिए हँसते है ।
कोई अपना कुछ कहता नहीं , कोई अपना सा लगता नहीं । कोई रिश्ता अब रिश्ते निभाता नहीं ।
सब का स्वाभिमान, सब का अहंकार सबसे बड़ा हो गया, जो त्याग था जो बलिदान था सब भूतकाल हो गया ।
जिस को बनाने के प्रयास में अरसा गुज़रा, एक पल लगा उसको बिखरने में ।
जिस मोह्बत को खुले हाथों से बांटता रहा,उसी मोह्बत ने ख़ुद से महरूम रखा। इस जहान का होके भी इस जहान का हो ना सका ।
दुनिया मुझे समझ ना सकी, मैं दुनियादरी कर ना सका ।किसी से नाराज़ नहीं बस खुद से बहुत ख़फ़ा हूँ ।
कोई है नहीं जिस से कह सकु, इसलिए लिख रहा हूँ ।

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