Monday, January 6, 2014

ज़िन्दगी जीने लगा हूँ

तुम्हारे किसी और कि होने का असर कुछ यूँ हुआ था मेरे दिल पे कि ये पत्थर दिल हो गया था
चटानों जैसा सख्त जो न कुछ समझता था ना किसी बात पे पिघलता था
पर तुम्हारे तसवुर से अब इस पत्थर दिल में दरारे पड़ ने लग गयी है
कुछ पुराणी यादों कि मिट्टी भी जमने लगी है
अब अक्सर इन दरारो में तुम्हारे लिए मोह्बत के फूल खिलते है
जो मेरे पतझड़ भरे जीवन में रंग भरते है
और मैं इन फूलो कि खुशबू से महकता रहता हूँ
इन महके हुए पलो में मोह्बत और जीवन के गम्भीर अर्थ को कुछ कुछ समझने लगा हूँ
पहेले में किसी तरह ज़िन्दगी काट रहा था
अब मैं ज़िन्दगी जीने लगा हूँ । ज़िन्दगी जीने लगा हूँ |

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