Sunday, October 28, 2012

ये मन

ये मन कहीं ठहरता नहीं कहीं रुकता नहीं
जाने ऐसा क्या खोया है इसका जो कहीं मिलता नहीं
कहीं भी कभी भी राहत नहीं है
बस तेरा नाम सुन के थम जाता है
दिल पे हाथ रख लेता है, यूँ तो आवारा है ये
जाने को कहीं भी जा सकता है पर जाने क्यूँ
तेरे ही गुरुत्वाकर्षण की परिधि में भटकता रहता है

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