Saturday, October 20, 2012

फिर कुछ ख्याल

तुम को जाते हुए देख दिल किया तुम को वापस पुकार लू
फिर सोचा जो तुम को वापस आना ही होता तो तुम जाती ही क्यूँ
कई बार यूँ भी हुआ खुद से ही खुद की मोहबत को ले कर तकरार भी हुई
हर तकरार के बाद कुछ आंसू छलका लिए थोड़ी देर तनहा रह लिए
फिर तेरी मोहबत को सीने में लिए खुद को तेरे लिए काबिल साबित करने चल निकले
कई सारे सवाल है जीन के जवाब आज भी ढूँड रहे है
क्यूँ आज भी तुम्हारे लिए मोहबत है मेरे सीने में
क्यूँ तुम को आवाज़ देता हूँ तन्हाई में
जानता हूँ तुम अब कभी नहीं आओगी
शायद ये भी दिल को पता है की अब तुम से कभी आमना सामना न हो पाए
पर शायद मैंने भी बेबस हूँ मेरी मोहबत की दीवानगी के आगे
जाने क्यूँ आज तक उस जगह पे किसी और को काबीज नहीं करा पाया जिस जगह पे तुम थी मेरे दिल में
खुद में ही सोचता हूँ ऐसी क्या बात थी तुम में
ऐसी भी क्या मोहबत थी तुम्हारे लिए
जो तुम को हर दम अपने पास मेहसूस करता हूँ
तुम्हारी पाजेब ( पायल ) की छन छनाहट बहुत शोर में भी सुन लेता हूँ
तुम्हारी महक हर वक़्त आँखों में सांसो में मेहसूस करता हूँ
तुम अगर पास होती तो तुम से ही पूछ लेता ये जो है मेरे और तुम्हारे दरमियाँ
एक तरफा ही सही इस को क्या नाम दू
ये मोहब्त तो नहीं मोहब्त भी इस के आगे बहुत छोटा शब्द लगता है
ये मोहबत से कहीं बहुत ऊपर जिस के लिए कोई नाम कोई शब्द अभी तक दुनिया की किसी शब्दावली में नहीं
जानता हूँ पुरे यकीं से कह सकता हूँ तुम्हारा भी यही जवाब होता

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