Wednesday, June 8, 2016

वफ़ा बेवफा के इलज़ाम तब भी होंगे पर तुम मुझसे और मैं तुमसे कभी जुदा नहीं होंगे

सारे रास्ते एक एक कर बंद हो गए
सारी कोशिश नाकामयाब रही
ना तुम मुझसे मिल सकी
ना मैं तुमसे मिल सका
बातें हमारी जंहा थी वहीं रही
दिल के दर्द को नापने का कोई माप ना रहा
तरसते तरसते तुम्हारे लिए
मेरी मोह्बत को फकीरी लग गयी
टूटने का आलम ये था पत्थर भी शर्मिंदा थे
पर्याय था बस जैसे हो हालात को काबू किया जाये
पर तक़दीर को ये भी रास ना आया
मेरे जिगर के लहू से समझौता तैयार किया गया
मैं नहीं था पर मसौदा था
पढ़ते पढ़ते उसने हर शब्द पे बेवफा कहा
अफ़सोस उस की उँगलियाँ मेरे लहू को छू कर भी पहचान ना पाई
और मैं सोचता रहा ता उम्र हम दोनों की रगो में एक खून दौड़ता है
खैर इस जनम के लिए अजनबी अंजान सही
पर कभी तो न्याय होगा
फिर किसी दूसरे जनम में यहीं से शुरू करेंगे जहाँ से छूट रहा है
वफ़ा बेवफा के इलज़ाम तब भी होंगे पर तुम मुझसे और मैं तुमसे कभी जुदा नहीं होंगे ।

No comments: