Friday, November 2, 2012

सिलसिले

सिलसिले तो अभी भी थे तेरे और मेरे दरमियान
पर ये भी हकीक़त है की वो सिर्फ मुझ तक ही सीमित हो गए थे
अब उन सिलसिलो से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं था
यूँ तो मैंने भी चाहता था की मेरा भी कोई नाता रहे अब उन सिलसिलो से
दिखने दिखाने के लिए यूँ तो मैंने भी सारे सिलसिले तोड़ लिए थे तुमसे
पर दिल की गहराइयों में पैठ बना चुके उन सिलसिलो से मैंने निजात पा ना सका हूँ अब तक ये भी एक सचाई है
वक़्त के साथ न जाने कितने और सिलसिले अपना वजूद खो चुके है
पर तुम से क्यूँ अब तक ये बरकरार है इस का जवाब मैंने खुद भी खोज रहा हूँ
हर बार वोही एक जवाब मिल पता है इतनी मेहनत के बाद की मेरा और तुम्हारा सिलसिला है ही ऐसा
जो भुलाये नहीं भूलता मिटाए नहीं मिटता
एक आग की चिंगारी है दिल के एक बड़े भाग में जो समय की धार में भी बुझाये नहीं बुझती
शायद यही एक फर्क है तुम में और मुझे में तुम सब कुछ भूल के आगे निकल गयी
और मैंने कुछ न भूल के तुम्हारे पीछे चलता रहा

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