Thursday, January 7, 2016

मेरे और तुम्हारे बीच रिश्तो की एक नयी परिभाषा लिख सके

शायद अब भी कँही हो तुम दिल दिमाग में
जा के भी जाती नहीं हो तस्वुर से
कल फिर खवाबो में आई थी वो बातें पूरी करने के लिए जो हमारे बीच अधूरी रह गयी थी
देखा था तुम को ट्रैन में मेरे ही पीछे खड़ी थी
तुम देख रही थी की कैसे मैं ट्रैन से उतर रहा हूँ
कुछ फ़िक्र दिख रही थी तुम्हारे चेहरे से पर जाने मैं किस अलग धुन में था
की देख के भी अनदेखा कर दिया
तुम को जो बातें करनी थी होनी थी हमारे बीच वो फिर अधूरी ही रह गयी
मैं तुम को पीछे छोड़ते हुए आगे चला गया
शायद उस वक़्त की तलाश में जो मेरे और तुम्हारे बीच रिश्तो की एक नयी परिभाषा लिख सके

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