Friday, December 6, 2013

गुलाबी ठण्ड

ऐसी ही कुछ सर्द रातें थी जब तुम मेरे पास थी
वो लॉन कि बेंच पे साथ साथ बैठ के चाँद सितारो को निहारा करते थे
सर्द हवाओ के झोके जब भी हम को छू जाते थे
तुम अपनी ओड़ी हुयी शॉल मुझे भी उडा देती थी
और शरारत करते हुए अपनी ठन्डी हथेलियों से मेरे गालो को छू लेती थी
आज फिर सर्द रात है और मैं तनहा बैठ हूँ लॉन कि बेंच पे
तुम्हारी ओड़ी हुयी शॉल अकेला ओढ़े
पर शायद इस गुलाबी ठण्ड को भी तुम्हारी आदत पता है
आते जाते सर्द हवा के झोके हौले से मेरे गालो को छू जाते है
कुछ कुछ तुम्हारी ठन्डी हथेलियों का एहसास दिला जाते है

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