Monday, August 19, 2024

तकदीर

 "तकदीर को हमारी कुछ परेशानी है 

हमारी मुस्कुराहट से, जब भी मुस्कुराते हुए देखती है,

कोई ऐसा दर्द दे जाती है,

जिसे संभालते-संभालते सीने में आँसुओं का समंदर समा जाता है। 

यहाँ भी एक नियम से बंधे हुए हैं, 

कहते हैं समंदर कभी अपनी मर्यादा लांघता नहीं, 

बस आँखों से छलक सकता है, 

पर कभी नदी-तालाबों जैसे अपना बांध तोड़ नहीं सकता। 

वैसे इसमें हमारी तकदीर का कोई दोष नहीं, 

दर्द से हमारा चोली-दामन का रिश्ता है, जो भी दर्द अब तक मिले हैं, 

उन्हें जीत की निशानियाँ मान ट्रॉफी की तरह सजा के रख लिया है। 

नियति से हमारी यह जंग हमारे जन्म लेने के समय से चली आ रही है, 

वो हमें हारता हुआ मायूस देखना चाहती है, 

पर हम भी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं नियति से लोहा लेने के लिए। 

हम कहते हैं जितने दर्द देना है दे दे,

तेरे हर दर्द को अपने लबों पर सजाएंगे एक नई मुस्कान से,

पर इतनी जल्दी हार नहीं मानेंगे जब तक इस ज़िंदगी को एक मिसाल में न बदल दें,

हम लड़ते जाएंगे, चलते जाएंगे।"

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