Wednesday, March 14, 2018

कुछ पल साथ साथ जी ले अपने मिट्टी के घर में ।

बहुत हुआ तेरी जिम्मेदारियों का बहाना ,
बहुत हुआ मेरे किस्से कहानियों का ज़माना
आ अब कहीं दूर पहाड़ियों में एक आशियाना बनाये
तेरा मेरा ।
मिट्टी का एक छोटा सा घर हो दूर फैले मैदान में ,
मिट्टी का चुल्हा हो , मिट्टी का ही चबूतरा ।
मेरी छाती बने हर रात तेरा बिछौना , जहां तू सर रखते ही तू ऐसी चैन की नींद सोये जैसे कोई सपना सलोना ।
मिट्टी की दीवारों पे नाम हो सिर्फ तेरा मेरा ।
जो छुट गया था हम दोनों के बीच , साथ रह कर कुछ उन पलों की भरपाई कर ले , तू मेरे साथ रह ले , मैं तेरे साथ रह लू ।
मेरी नज़रें बस तुझे देखे ,तेरी नज़रें मुझे ।
जहां सिर्फ तेरी मेरी आवाज़ें हो या ख़ामोशी हो तेरी मेरी । हम दोनों की अधूरी बातें पूरी हो, मोहबत मुक़म्मल हो । कर्त्तव्य तो हम दोनों ने अपने पुरे किये, अब इश्क़ करे की हमारे जनम सार्थक हो ।
तू मुझसे वो कह दे जो तूने कभी कहा नहीं , तू मुझसे वो सुन ले जो मैं हर दम तुझसे कहना चाहता हूँ।
हम दोनों के पास वक़्त ही वक़्त हो एक दूसरे को कहने सुनने के लिए ।
एक दूसरे से दूर दूर तो बहुत मर लिए अपने अपने महलों में, कुछ पल साथ साथ जी ले अपने मिट्टी के घर में ।

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