Tuesday, June 16, 2015

बेसब्र ज़िन्दगी

इतनी बेसब्र क्यों है ज़िन्दगी कुछ लम्हा ठैर जाये तो क्या
बहुत कुछ है कहने को बहुत कुछ है करने को
बस थोड़ा खुद को समझ लू थोड़ा खुद को जान लू तो क्या
अभी मैं खुद से कुछ कहना चाहता हूँ
इन लम्हों में रुकना चाहता हूँ अपने आप से मिलना चाहता हूँ
लगता है जैसे कितने समय से चल रहा हूँ
कुछ देर ठैर के पीछे मुद के देखना चाहता हूँ
ये बेसब्र ज़िन्दगी क्या इतना भी मौका नहीं देगी मुझे
ज़िन्दगी इतनी भी तो बेरहम तो नहीं
अभी थोड़ा इश्क़ बाकि है ज़िन्दगी का मेरे लिए
शायद वो भी मुझसे चाहती है की मैं खुल के जी लू जी भर के
पीछे कोई अफ़सोस ना रहे फिर ज़िन्दगी से
बस जब भी मिले मैं और ज़िन्दगी मुस्कुरा के मिले

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