Tuesday, December 23, 2014

ज़िन्दगी और मैं

इतनी बेसबर क्यों है ज़िन्दगी , कुछ लम्हा ठहर जाये तो क्या
बहुत कुछ है कहने को बहुत कुछ है करने को
अभी बस खुद को थोड़ा समझ लू थोड़ा कुछ को जान लू तो क्या
अभी मैं खुद से कुछ कहना चाहता हूँ
इन लम्हों में रुकना चाहता हूँ अपने आप से मिलना चाहता हूँ
लगता है जैसे कितने समय से बस चल रहा हूँ
कुछ देर पीछे मुड़ के देख न चाहता हूँ
ये बेसबर ज़िन्दगी क्या मुझे इतना भी मौका नहीं देगी
ज़िन्दगी मुझे पे इतनी बेरहम भी तो नहीं
अभी थोड़ी मोहबत बाकि है ज़िन्दगी की मेरे लिए
ज़िन्दगी भी मुझे से चाहती है की मैं खुल के एक बार खुद से मिल लू
ताकि पीछे फिर कोई अफ़सोस ना मुझे रहे ना ज़िन्दगी को
बस जब भी मिले फिर ज़िन्दगी और मैं मुस्कुरा के मिले.

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