Saturday, September 13, 2014

मासूम मोह्बत

अब भी सर्द मौसम की सुबह में उसी मासूम मोह्बत के साथ खिड़की के कांच पे जमी ओस पे तुम्हारा और मेरा नाम लिखा करता हूँ
आज भी सुबह की चाय में अदरक की सुगंध के साथ तुम्हारे हाथो की महक आती है
तुम्हारे पसंदीदा गानो की प्लेलिस्ट भी बना ली है अक्सर सुनता हूँ ऑफिस से आने के बाद
लगता है जैसे तन्हाई में पास आ कर के तुम कानो में मेरे गुनगुना रही हो
कहने को मेरे घर की हर दीवार कोरी है पर मेरी आँखों से देखो तो हर दीवार पे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी तस्वीर है
मेरी और तुम्हारी प्रेम कहानी के अनोखे किस्से कहानियाँ भी लिखी हुई है जो सिर्फ मैं पढ़ता हूँ
पहाड़ो से बहते झरनो को देख तुम्हारे कानो के झुमके याद आते है
रात के अँधेरे में पुरे चाँद को देखता हूँ तो तुम्हारे माथे की बिंदी याद आती है
तुम्हारी एक चुनरी चुपके से चुरा ली थी आज भी तकिये में रख के सोता हूँ
जानता हूँ दुनिया की नज़र में ये सब पागलपन है पर किसी को कैसे समझाऊ की
तुम्हे पाना खोना मेरे हाथ में नहीं था पर तुमसे बेइंतेहा मोह्बत करना मैंने अपना धर्म मान लिया था
और उसी मासूम मोह्बत के साथ अब मैं सिर्फ अपने धर्म का पालन कर रहा हूँ

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