Monday, May 13, 2013

मेरी दुनिया

कितना नादान था जो तुम्हे हाथो की लकीरों में ढूँढता रहा
तुम्हे पाने के लिए गृह नक्षत्रो से लड़ता रहा
बचपना ही तो था जो मोह्बत की गहराई को समझ न सका था तब
पर उसी मोहबत ने वक़्त के बीतने के साथ साथ अपने अनजाने मायनो से मुझे अवगत करवा दिया
इस वास्तविक दुनिया से परे मुझे मेरी एक अलग दुनिया का एहसास करा दिया
जन्हा ना मैं तुम्हे किसी से मांग सकता हूँ और ना कोई तुम्हे मुझे दे सकता है
एक ऐसी दुनिया जन्हा तुम हमेशा से मेरी हो और मेरी ही रहोगी
अब वक़्त का वो दौर है जब ये गृह नक्षत्र रोज़ अपनी गति और स्थान बदलते है तुम्हे मेरी दुनिया से जुदा करने के
अब क्या कहु इन नादानों की नादानी पे
कैसे बताऊ की मेरी दुनिया का इनके ब्रम्हांड से कोई सरोकार नहीं

No comments: