ज़िंदगी की किताब के अब कुछ ही पन्ने बाकी हैं,
पिछले पन्नों को पलटकर देखता हूँ तो,
कुछ पन्ने उजाले से भरे हुए हैं और कुछ गहरे अंधेरों से,
पिछले पन्नों पर लिखी कुछ दास्तानें माँ को गुदगुदा जाती हैं,
तो कुछ को पढ़कर आँखें नम हो जाती हैं।
पन्ने पलटते-पलटते अक्सर ये एहसास होता है,
जो मंजिल ज़िंदगी शुरू होने पर थी, उससे कहीं बहुत अलग है अब की मंजिल।
जाने कितने निशान हैं अनगिनत लोगों के इन पन्नों में,
कितनी मोहब्बत और नफरत भरी हुई है इन पिछले पन्नों में।
पिछले पन्नों से गुजरती हुई ज़िंदगी, जैसे पर्दे पर चलती हुई कोई फिल्म का एहसास भी करा देती है।
जानता नहीं आगे के पन्नों पर और क्या-क्या लिखा है,
पर ये जरूर कह सकता हूँ, दुनिया की किताबों से जितना पढ़ा है,
उससे कहीं ज्यादा सिखाया है ज़िंदगी ने।
कितना मुकम्मल रहा ये ज़िंदगी का सफर,
ये तो ऊपर वाले पे छोड़ रखा है,
कोशिश यही है कि बाकी बचे पन्नों पर ज़िंदगी को कोई मुकम्मल अंत मिल जाए।
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