आज भी दिल को तेरी दरकार क्यों है,
जानता हूँ हम दोनों की मंजिलें अलग हैं।
आज तुम जहाँ हो और जहाँ मैंने हूँ,
वहां से
हम दोनों का एक-दूसरे के लिए वापस लौट आना मुमकिन नहीं,
फिर भी हर मोड़ पर मुझे तुम्हारे लौट आने की उम्मीद क्यों है?
इसी एक उम्मीद पर रोज़ घर से निकलता हूँ कि कहीं किसी मोड़ पर,
तुम सब गिले-शिकवे भूलकर मेरी मोहब्बत को अपना लोगी।
जानता हूँ ये सब मेरे दिल को बहलाने की एक कोशिश है,
जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं,
पर मैं भी मजबूर हूँ।
दिमाग तो बहुत समझदार है पर ये दिल भावनाओं के आवेग में बह जाता है,
जिसके लिए हकीकत नहीं, तेरे नाम की एक झूठी तसल्ली ही काफी है।
No comments:
Post a Comment