Thursday, September 20, 2012

माँ

लॉन की बेंच को आज आपकी कमी महसूस हो रही थी, 
शिकायत कर रही थी कि अब उसका कोई अपना उसके पास नहीं आता।
लॉन की घास भी कुछ सूख सी गई है, 
पूछा तो कहती है अब उसे आपके पैरों की नमी नहीं मिलती।
वो जो आपने तुलसी का पौधा लगाया था न, 
वो भी मुरझा गया है, कहता है अब माँ जल अर्पण नहीं करती। 
अब इन नादानों को कैसे समझाऊं कि जिस माँ ने इन सबको अपनत्व दिया था, 
उसकी और भी बहुत सी जिम्मेदारियाँ हैं, उसके अपनत्व के लिए तरसती और भी कई कोमल हथेलियाँ हैं,
 जिनको संस्कारों का पाठ पढ़ाने माँ उनके पास गई है। 
माँ तो एक ही है, पर उसके आँचल का प्यार पाने के लिए बेचैन बहुत हैं, 
इसलिए माँ को अपना सारा समय अपनी सभी संतानो में बराबर देना पड़ता है... 
तुम सब की वेदना मैं भी समझता हूँ, पर ज़रा उस माँ के लिए भी सोच लो, 
वो भी तुम सब के बिना इस सी वेदना को सहकर कहीं और अपने कर्तव्य को पूरा कर रही है।

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