Monday, April 2, 2012

प्रतिबिंब

एक ऐसी जगह जाना चाहता हूँ,
जहाँ न कोई मुझे पहचानता हो,
एक ऐसी जगह जहाँ न कोई आवाज़ हो,
न कोई मुझे मेरे नाम से पुकारता हो,
दूर-दूर तक जहाँ कोई नज़र न आता हो,
सिर्फ मैं ही मैं रहूँ,
और कोई न हो,
पर ऐसा हो मेरे इस मैं में
तुम हमेशा शामिल रहो,
जहाँ तक नज़र जाए,
मुझे मैं, तुम और तुम में मैं नज़र आऊँ,
मैं आवाज़ दूँ और तुम सुनाई दो,
जहाँ मैंने कुछ न कहा और तुम समझ जाओ,
एक ऐसी जगह जहाँ आइने बहुत हों
पर प्रतिबिंब कभी तुम्हारा हो कभी मेरा।

No comments: