छुरी और काँटों से खाने में तेरे हाथों का स्वाद नहीं आता
हो सके तो अपने हाथ से दाल चावल मिला के खिला दे माँ
रोज बैठा तो हूँ ए सी में पर,
तेरी गोद में लेट कर तेरे आँचल की ठंडी छाँव का सुकून नहीं मिलता
हो सके तो अपने हांथों से हवा कर फिर सुला दे माँ
बाहर से लड़ झगड़ के आता था रोता था बिलखता था,
तू अपनी साडी के कोनों से मेरे आंसूं पोछ देती थी
अब आंसूओं के सागर में गोते लगा रहा हूँ
हो सके तो आके पार लगा दे माँ,
तेरे सपनों को साकार करने चलते चलते बहुत दूर आ गया हूँ
हो सके तो वापस बुला के अपने गले से लगा ले माँ
थक गया हूँ दुनिया से लड़ते लड़ते, हो सके तो
मेरे सर पे अपना हाथ रख मेरा होसला बढा दे माँ
आज जो कुछ हूँ सब तेरे ही दिए हुए संस्कारों की वजह से हूँ
तेरे चरणों पे शीश नवा कर तुझे प्रणाम करता हूँ,
हो सके तो हर जनम तुझे ही माँ के रूप में पाऊँ ये आशीर्वाद दे माँ
कभी कहा नहीं पर आज कहता हूँ, "आय लव यू माँ ."