Wednesday, November 9, 2011

मुसाफ़िर

यहाँ न कोई रकीब है, न ही कोई सनम,
मुसाफ़िर हैं सभी राह चलते हुए,
जो कुछ पड़ाव के लिए हमसफर हो लिए,
कुछ दिन साथ रहे हंस बोले मोहब्बत कर ली,
फिर जुदा हो चले अपनी मंजिल के लिए।

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