Tuesday, November 22, 2011

तेरे जाने के बाद

अब तो रोज महफ़िल सजती है,
पर अब की महफ़िलों में वो जान नहीं होती तेरे जाने के बाद।
ये चाँद भी खिलता है पर थोड़ा उदास रहता है,
रोटा बिलकता है कभी कभी तो पूरा खिलता भी नहीं,
रूठ कर मुँह फुलाए बैठा रहता है तेरे जाने के बाद।

मैं समझा नहीं जाता हूँ तो कहता है,
तेरे और उसके मिलने और जुड़ने पर
मैं घटा बदलता था पूर्णिमा और अमावस्या का प्रतीक बन कर,
शिकायतें जायज़ हैं लेकिन कैसे बताऊँ इस पागल को,
कुछ वादे किए थे तुझे से ज़िंदगी जीने के,
इसलिए हर दम मुस्कुराता रहता हूँ,
हँसता खेलता रहता हूँ
तेरे जाने के बाद।

Wednesday, November 16, 2011

नीला आसमान

उनकी एक तस्वीर है मेरे पास
बरसों पहले दे कर गई थी वो,
रोज देखता हूँ फिर भी जी नहीं भरता,
ये नीला आसमान लगता है
जैसे उनसे ही अपना रंग उधार ले आया हो।

लंबी बारिश के बाद जैसे इंद्रधनुष
अपनी सप्तर्षंगी छटा बिखेरता है,
वैसे ही दस साल इंतजार के बाद रोज
मेरे घर के आंगन में आसमानी रंगों में सिमटी हुई,
गहरी आँखों वाली परी उतरती है,
जैसे कई वर्षों से चलते हुए
घने जंगलों में नीलकंठ पंछी कोई दिखा हो..

सच्ची मोहब्बत पर यकीन करने लगा था मैं

ना नाम मालूम था,
ना गाँव का कुछ पता था उनके,
उम्मीद भी कुछ टूटने लगी थी कि उनसे कभी मुलाकात भी हो पाएगी,
क़िस्मत में लेकिन उनसे मिलना लिखा था शायद,
जो मेरी मरती हुई उम्मीदों की दुआ क़बूल हो गई,
मेरी गहन तपस्या का फल मिल गया था मुझे,
और फिर सच्ची मोहब्बत पर यकीन करने लगा था मैं।

घर की टूटी छत

मेरे घर की टूटी छत से चाँद कर धूप आती है,
मेरे अंधेरे कमरे में रोशनी का वही एक जरिया है।

Wednesday, November 9, 2011

मुसाफ़िर

यहाँ न कोई रकीब है, न ही कोई सनम,
मुसाफ़िर हैं सभी राह चलते हुए,
जो कुछ पड़ाव के लिए हमसफर हो लिए,
कुछ दिन साथ रहे हंस बोले मोहब्बत कर ली,
फिर जुदा हो चले अपनी मंजिल के लिए।

आज ग़मों की ढलती शाम तो क्या

आज ग़मों की ढलती शाम तो क्या,
कल जगमगाता हुआ सवेरा तो होगा,
नहीं मिली अभी तक अपेक्षित सफलता तो क्या हुआ,
कल सफलता की ऊँचाइयाँ तो चुमेंगे,
मेरे शब्दों की आज तुम्हारी नज़रों में कोई कीमत नहीं तो क्या,
कल यही मेरे शब्द किसी के लिए बेशकीमती होंगे।

Tuesday, November 1, 2011

मोहब्बत का इतना बोझ

रोज़ चली आती थी मेरी क़ब्र पे दस्तक देने वो,
सब कहते थे मुझसे बेपनाह मोहब्बत करती थी वो,
क़ब्र के अंदर भी सांस लेना मुश्किल हो गया,
फूलों की चादर को अपनी मोहब्बत का इतना बोझ दे कर जाती थी वो

खामोश हैं आँखें

खामोश हैं आँखें कुछ नमी लिए हुए,
जाने कितना कुछ छुपाए हुए,
बहुत दर्द लिए हैं,
न जाने कब से दिल में दबाए हुए,
कहते-कहते क्यों होंठ हैं कि सिल जाते,
धड़कनें हैं गुज़ारिश करती हुई, बेज़ुबान दर्द की परतें खोलती हुई...