अब तो रोज महफ़िल सजती है,
पर अब की महफ़िलों में वो जान नहीं होती तेरे जाने के बाद।
ये चाँद भी खिलता है पर थोड़ा उदास रहता है,
रोटा बिलकता है कभी कभी तो पूरा खिलता भी नहीं,
रूठ कर मुँह फुलाए बैठा रहता है तेरे जाने के बाद।
मैं समझा नहीं जाता हूँ तो कहता है,
तेरे और उसके मिलने और जुड़ने पर
मैं घटा बदलता था पूर्णिमा और अमावस्या का प्रतीक बन कर,
शिकायतें जायज़ हैं लेकिन कैसे बताऊँ इस पागल को,
कुछ वादे किए थे तुझे से ज़िंदगी जीने के,
इसलिए हर दम मुस्कुराता रहता हूँ,
हँसता खेलता रहता हूँ
तेरे जाने के बाद।