Tuesday, July 5, 2011

बचपन और जवानी के घावों के फर्क

मेरी खिड़की से अब पक्की सड़क नजर आती है,
जो कभी पगडंडी हुआ करती थी,
बचपन में जिन पर बेखौफ नंगे पांव दौड़ते थे,
अब तो हल्की ठोकर से सहम जाते हैं,
बचपन और जवानी के घावों के फर्क को समझने
की कोशिश की तब समझ आया,
बचपन का लड़खड़ाना बस खरोच देता था,
वहीं अब हल्की सी ठोकर दिल और दिमाग पर गहरा सदमा कर जाती है।

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