वो कहती है, ना मुझे तुम मिल सके,
ना तुमने मुझे हासिल किया,
हम दोनों तो अब जुदा हैं,
फिर हम अपने इस रिश्ते को क्या नाम दें,
मैंने कहा जुदा से सिर्फ हमारे जिस्म हो रहे हैं,
दोनों की आत्मा तो एक-दूसरे में ही लीन है,
ऐसे रिश्तों के नाम नहीं होते दुनिया की नजरों में,
पर मैं तुम में अपनी राधा देखी है,
तुम मुझे में अपना श्याम देख लो।
Thursday, July 7, 2011
Tuesday, July 5, 2011
बचपन और जवानी के घावों के फर्क
मेरी खिड़की से अब पक्की सड़क नजर आती है,
जो कभी पगडंडी हुआ करती थी,
बचपन में जिन पर बेखौफ नंगे पांव दौड़ते थे,
अब तो हल्की ठोकर से सहम जाते हैं,
बचपन और जवानी के घावों के फर्क को समझने
की कोशिश की तब समझ आया,
बचपन का लड़खड़ाना बस खरोच देता था,
वहीं अब हल्की सी ठोकर दिल और दिमाग पर गहरा सदमा कर जाती है।
जो कभी पगडंडी हुआ करती थी,
बचपन में जिन पर बेखौफ नंगे पांव दौड़ते थे,
अब तो हल्की ठोकर से सहम जाते हैं,
बचपन और जवानी के घावों के फर्क को समझने
की कोशिश की तब समझ आया,
बचपन का लड़खड़ाना बस खरोच देता था,
वहीं अब हल्की सी ठोकर दिल और दिमाग पर गहरा सदमा कर जाती है।
जान तुम तो कमाल कर गए
वो बिना वार किए ही दिल निकाल के ले गए,
और हम सिर्फ इतना कह पाए,
जान तुम तो कमाल कर गए..
और हम सिर्फ इतना कह पाए,
जान तुम तो कमाल कर गए..
सदियां जी गए
जानें क्या बात थी उनके बिछड़ने में,
हमारी आंखों के आंसू आंखों में ही सुख गए,
होंठों ने तो बहुत कुछ कहना चाहा,
पर अल्फाज़ गले में ही रुक गए,
हर पल मरते रहे उनकी जुदाई में,
पर उनके इंतजार में सदियां जी गए...
हमारी आंखों के आंसू आंखों में ही सुख गए,
होंठों ने तो बहुत कुछ कहना चाहा,
पर अल्फाज़ गले में ही रुक गए,
हर पल मरते रहे उनकी जुदाई में,
पर उनके इंतजार में सदियां जी गए...
क्या बात है
यूं तो सभी उनका ख्याल रखते हैं,
उनहें कभी हमारा ख्याल आ जाए तो क्या बात है।
यूं तो वो अक्सर चुप ही रहते हैं,
हमारे सामने आकर दो अल्फाज़ कह जाएं तो क्या बात है,
उनकी नज़रे हमें ढूंढ रही हों,
और हमारी नज़रे उनसे मिल जाएं तो क्या बात है,
उनसे बात करने के लिए तो सभी बेकरार रहते हैं,
वो हमसे बात करने के लिए बेकरार हो जाएं तो क्या बात है,
वो अक्सर भीड़ में होते हैं,
कभी हमारे बिना भीड़ में तन्हा हो जाएं तो क्या बात है,
हम तो उनसे बेपनाह मोहब्बत करते हैं,
उन्हें भी हमारी मोहब्बत से मोहब्बत हो जाए तो क्या बात है।
उनहें कभी हमारा ख्याल आ जाए तो क्या बात है।
यूं तो वो अक्सर चुप ही रहते हैं,
हमारे सामने आकर दो अल्फाज़ कह जाएं तो क्या बात है,
उनकी नज़रे हमें ढूंढ रही हों,
और हमारी नज़रे उनसे मिल जाएं तो क्या बात है,
उनसे बात करने के लिए तो सभी बेकरार रहते हैं,
वो हमसे बात करने के लिए बेकरार हो जाएं तो क्या बात है,
वो अक्सर भीड़ में होते हैं,
कभी हमारे बिना भीड़ में तन्हा हो जाएं तो क्या बात है,
हम तो उनसे बेपनाह मोहब्बत करते हैं,
उन्हें भी हमारी मोहब्बत से मोहब्बत हो जाए तो क्या बात है।
आवरण
एक आवरण चढ़ा रखा था हमारे स्वभाव में हमने,
बड़ा यकीन था कोई तो होगा जो इस नकली सख्सियत को चीर कर
हमारे अंतरमान में झाँकेगा,
हमारी बेज़ुबान सवेदनाओं को समझेगा,
इस पर मेरी तक़दीर मुझे पे हँसते हुए बोली,
जिनके पास खुद को समझने का वक्त नहीं है,
वो तुझे और तेरी दबी हुई सवेदनाओं को क्या समझेंगे..
बड़ा यकीन था कोई तो होगा जो इस नकली सख्सियत को चीर कर
हमारे अंतरमान में झाँकेगा,
हमारी बेज़ुबान सवेदनाओं को समझेगा,
इस पर मेरी तक़दीर मुझे पे हँसते हुए बोली,
जिनके पास खुद को समझने का वक्त नहीं है,
वो तुझे और तेरी दबी हुई सवेदनाओं को क्या समझेंगे..
थोड़ा अभिमान बाकी है
स्कूल कॉलेज में एक हस्ती थी मेरी,
आज सड़क पर चलती हुई भीड़ का एक हिस्सा हूँ,
पर थोड़ा अभिमान अभी बाकी है,
बहुत उम्मीद थी खुद से सारे लोगों में मेरा चेहरा अलग नजर आएगा,
आज इतने लोगों में खुद की शख्सियत से जुदा हूँ,
पर थोड़ा अभिमान अभी बाकी है,
पानी के बुलबुले की तरह है जीवन,
इस छन्न-भंगुर जीवन का थोड़ा अभिमान अभी बाकी है,
साथी तो बहुत बने इस जीवन पथ पर,
अब सब अपनी-अपनी मंजिल के मुसाफ़िर हैं,
फिर भी उनके साथ का थोड़ा अभिमान अभी बाकी है,
खाली हाथ दुनिया में आया था,
खाली हाथ ही इस दुनिया से जाऊंगा,
फिर भी इस खालीपन का थोड़ा अभिमान अभी बाकी है,
हर वक्त कुचला जाता है यहाँ मेरा आत्मसम्मान, फिर भी मेरे "मैं" में अभी थोड़ा अभिमान बाकी है।
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