कितनी कोशिश कर रहा था , कितना कुछ अपनी हद से ज्यादा बाहर जा के कर रहा था की बस तुम मिल जाओ जैसे भी हो ,तुम्हे भी मुझसे प्यार हो जाये जाइए तैसे ।
पर अब लगता है तुम ना ही रहो ज़िन्दगी में तो बेहतर है , तुम्हारी जो छवि है मेरे मन मंदिर में वो बरक़रार रहे , उस में कहीं कोई बदलाओ ना आये ।
क्या है की तुम्हे ना पाने के दुःख के न्यूनतम स्तर को छु लेने के बाद , मैं वापस आ सकता हूँ, खुद बिखरा भी तो खुद को समेट सकता हूँ, खुद को संभाल के वापस बुलंदी को छु सकता हूँ ।
पर तुम्हारे साथ रह कर, एक बार जो तुम्हारी छवि बिगड़ गयी , मैं उसे सँवार नहीं सकता सुधार नहीं सकता । तुमसे दूर रह कर तुमसे मोहबत कर सकता हूँ लेकिन तुम्हारे करीब रह कर तुमसे नफरत नहीं कर सकता ।
मेरा धर्म था तुमसे मोहबत करना , तुमसे अपनी मोहबत का इज़हार करना और तुमसे बिना कोई उम्मीद किये तुमसे दूर बहुत दूर चले जाना ।
शायद इस दूर चले जाने में ही मुझे सुकून है , मेरे इश्क़ की सार्थकता है ।
पर अब लगता है तुम ना ही रहो ज़िन्दगी में तो बेहतर है , तुम्हारी जो छवि है मेरे मन मंदिर में वो बरक़रार रहे , उस में कहीं कोई बदलाओ ना आये ।
क्या है की तुम्हे ना पाने के दुःख के न्यूनतम स्तर को छु लेने के बाद , मैं वापस आ सकता हूँ, खुद बिखरा भी तो खुद को समेट सकता हूँ, खुद को संभाल के वापस बुलंदी को छु सकता हूँ ।
पर तुम्हारे साथ रह कर, एक बार जो तुम्हारी छवि बिगड़ गयी , मैं उसे सँवार नहीं सकता सुधार नहीं सकता । तुमसे दूर रह कर तुमसे मोहबत कर सकता हूँ लेकिन तुम्हारे करीब रह कर तुमसे नफरत नहीं कर सकता ।
मेरा धर्म था तुमसे मोहबत करना , तुमसे अपनी मोहबत का इज़हार करना और तुमसे बिना कोई उम्मीद किये तुमसे दूर बहुत दूर चले जाना ।
शायद इस दूर चले जाने में ही मुझे सुकून है , मेरे इश्क़ की सार्थकता है ।
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