Tuesday, November 14, 2017

तक़दीर बदलने के लिए रोज़ लकीरें मिटाता हूँ , पर मुक़दर है की बदलता नहीं

सब के साथ होता हूँ, पर किसी का साथ होता नहीं ।
सुनता सब की हूँ, पर खुद का कुछ कहता नहीं ।
चलता बहुत हूँ, पर कहीं भी पहुँचता नहीं ।
ढून्ढ बहुत कुछ रहा हूँ, पर मिलता कुछ नहीं ।
अजीब तलाश है , खत्म होती नहीं ।
भीड़ के साथ हूँ , पर मैं भीड़ नहीं ।
सब मेरे अपने है , पर मेरा अपना कोई नहीं ।
मैं चोट करता नहीं , पर मेरी चोट जल्दी भर्ती नहीं ।
कोई गुनाह करता नहीं, पर मेरी बेगुनाही पे यकीन कोई करता नहीं ।
तक़दीर बदलने के लिए रोज़ लकीरें मिटाता हूँ , पर मुक़दर है की बदलता नहीं ।

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