Date 6/8/2017 -----Raj
बचपन का हमारा रिश्ता , याद है तुम्हे हम दोनों को कभी किसी और की जरुरत नहीं पड़ी थी कभी । साथ बैठना , साथ खाना , साथ पढ़ना , एक दूसरे से लड़ना , वो cute से छोटे छोटे पर्ची में लेटर लिखना । यूँ कहूँ तो एक दूसरे की दुनिया थे हम ।
वो सिर्फ bye ना करने पे रूठ जाना तुम्हारा , फिर स्कूल से घर आते ही फ़ोन पे मनाना मेरा । अभी भी वैसे ही रूठ जाती हो क्या तुम , मैंने तो वैसे किसी को मनाया ही नहीं तुम्हारे जाने के बाद ।
पर कहते है ना हर अच्छे रिश्ते को नज़र लग जाती है , 12 पास करते करते मेरे और तुम्हारे रिश्ते को भी नज़र लग गयी थी । मुझसे पहले तुम सब का एडमिशन हो गया था , आमगांव में Bsc के लिए और मैं अपनी किस्मत से लड़ रहा था । मेरे एडमिशन होने के दरमियान , सुनता रहता था की तुम सब ने ऐसे एन्जॉय किया , तुम्हारी इन इन लोगो से दोस्ती हो गयी । वक़्त ने बाकि लोगो को तुम्हारे पास कर दिया और मुझे दूर बहुत दूर ।
खैर मेरा भी एडमिशन हो गया , अब मैं भी तुम से दूर जा चूका था । पर किसी को कभी अपना नहीं बना पाया । रोज़ सुनता था तुम लोगो के किस्से , तुम्हारा अब एक अलग ग्रुप बन गया था , जिसका मैं हिस्सा नहीं था ।
बात उन दिनों की है जब मैं इंजीनियरिंग के आखिरी साल में था , दीवाली मनाने घर आया था ।
वापस जब गोंदिया के लिए निकला तो जाते जाते तुमसे मिलते हुए जाने का सोचा । तुम से मिला और तुमने मुझे छु कर देखा तो , तुम चीख़ कर बोली तुम्हें तो बुखार है , तुमने मुझे बहुत रोका लेकिन मेरा जाना जरुरी था , तब हार कर तुमने अपने हाथो से बुखार की दवाई खिलाई थी । सच कहता हूँ गोंदिया पहुचने तक मेरा बुखार उतर चूका था , और शायद मेरे शरीर को भी पता चल चूका था , ये आखिरी बार है जो छु कर बता दे की राजू को बुखार है , उसे दवाई की जरुरत है ।
18 साल हो गए, सर्जरी हो गयी लेकिन आज तक बुखार नहीं आया । शायद तुम्हारे हाथो खाई हुई दवाई का असर अब तक है या तुम्हारी दुआ अब तक मेरे साथ है ।
तुम्हारे बाद कभी किसी को मैं अपना नहीं सका , किसी से भी उम्मीद करना छोड़ दिया । रूठना भूल गया क्यों की जानता था अब तुम नहीं रहोगी मानने के लिए ।
जाने कितने बरसों से बस चले जा रहा हूँ , बिना किसी उम्मीद के , बिना किसी रंझो गम के । अपने दिल और दिमाग को जैसे प्रोग्राम कर लिया हो की कोई नहीं है मेरा और दिल दिमाग दोनों ही मान चुके है की तुम्हारे बिना अब कोई अपना नहीं ।
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी ऐसी काट रहा हूँ जैसे तपते जलते रेगिस्थान में नंगे पैरों पे चले जा रहा है । कब से चल रहा हूँ पता नहीं , कब तक चलना है पता नहीं , बिना किसी से सवाल जवाब किय, उम्मीद किये बस चले जा रहा हूँ ।
बचपन का हमारा रिश्ता , याद है तुम्हे हम दोनों को कभी किसी और की जरुरत नहीं पड़ी थी कभी । साथ बैठना , साथ खाना , साथ पढ़ना , एक दूसरे से लड़ना , वो cute से छोटे छोटे पर्ची में लेटर लिखना । यूँ कहूँ तो एक दूसरे की दुनिया थे हम ।
वो सिर्फ bye ना करने पे रूठ जाना तुम्हारा , फिर स्कूल से घर आते ही फ़ोन पे मनाना मेरा । अभी भी वैसे ही रूठ जाती हो क्या तुम , मैंने तो वैसे किसी को मनाया ही नहीं तुम्हारे जाने के बाद ।
पर कहते है ना हर अच्छे रिश्ते को नज़र लग जाती है , 12 पास करते करते मेरे और तुम्हारे रिश्ते को भी नज़र लग गयी थी । मुझसे पहले तुम सब का एडमिशन हो गया था , आमगांव में Bsc के लिए और मैं अपनी किस्मत से लड़ रहा था । मेरे एडमिशन होने के दरमियान , सुनता रहता था की तुम सब ने ऐसे एन्जॉय किया , तुम्हारी इन इन लोगो से दोस्ती हो गयी । वक़्त ने बाकि लोगो को तुम्हारे पास कर दिया और मुझे दूर बहुत दूर ।
खैर मेरा भी एडमिशन हो गया , अब मैं भी तुम से दूर जा चूका था । पर किसी को कभी अपना नहीं बना पाया । रोज़ सुनता था तुम लोगो के किस्से , तुम्हारा अब एक अलग ग्रुप बन गया था , जिसका मैं हिस्सा नहीं था ।
बात उन दिनों की है जब मैं इंजीनियरिंग के आखिरी साल में था , दीवाली मनाने घर आया था ।
वापस जब गोंदिया के लिए निकला तो जाते जाते तुमसे मिलते हुए जाने का सोचा । तुम से मिला और तुमने मुझे छु कर देखा तो , तुम चीख़ कर बोली तुम्हें तो बुखार है , तुमने मुझे बहुत रोका लेकिन मेरा जाना जरुरी था , तब हार कर तुमने अपने हाथो से बुखार की दवाई खिलाई थी । सच कहता हूँ गोंदिया पहुचने तक मेरा बुखार उतर चूका था , और शायद मेरे शरीर को भी पता चल चूका था , ये आखिरी बार है जो छु कर बता दे की राजू को बुखार है , उसे दवाई की जरुरत है ।
18 साल हो गए, सर्जरी हो गयी लेकिन आज तक बुखार नहीं आया । शायद तुम्हारे हाथो खाई हुई दवाई का असर अब तक है या तुम्हारी दुआ अब तक मेरे साथ है ।
तुम्हारे बाद कभी किसी को मैं अपना नहीं सका , किसी से भी उम्मीद करना छोड़ दिया । रूठना भूल गया क्यों की जानता था अब तुम नहीं रहोगी मानने के लिए ।
जाने कितने बरसों से बस चले जा रहा हूँ , बिना किसी उम्मीद के , बिना किसी रंझो गम के । अपने दिल और दिमाग को जैसे प्रोग्राम कर लिया हो की कोई नहीं है मेरा और दिल दिमाग दोनों ही मान चुके है की तुम्हारे बिना अब कोई अपना नहीं ।
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी ऐसी काट रहा हूँ जैसे तपते जलते रेगिस्थान में नंगे पैरों पे चले जा रहा है । कब से चल रहा हूँ पता नहीं , कब तक चलना है पता नहीं , बिना किसी से सवाल जवाब किय, उम्मीद किये बस चले जा रहा हूँ ।
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