तुम्हारी वो ख़टी-मीठी कुछ-कुछ बातें
आज भी दिल को गुदगुदा जाती हैं।
काले-काले बादलों के पार जब भी देखता हूँ,
तुम्हारे कान की बालियां नज़र आती हैं।
झूमती, गुनगुनाती पुरवाई तुम्हारे चेहरे पर
आते बालों की याद ताज़ा कर जाती है।
सभी ख़ामोशी से कहते हैं मेरी कोई कहानी नहीं है,
मैं भी दबी ज़ुबान से कहता हूँ
तुम्हारा नाम लेकर मेरी कहानी
की बात ही निराली है।
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