Tuesday, April 5, 2011

meri likhi hui kuch nazamein hai.....

काश तुम कभी इस सागर जैसी गहराई वाले दिल का मंथन कर पाती,
इस सीने में दबे हुए अमृत कलश को निकाल पाती,
लेकिन तुमसे निकला भी तो विष का प्याला,
जिसने एक बनते हुए आशियाने को उजाड़ डाला......

मेरी और तुम्हारी वो मुलाकात,
जो आखिरी बन के रह गई,
तुम्हारी बोलती आँखों की ख़ामोशी
जाने कैसे तुम्हारा हाल-ए-दिल बयां कर गई,
बंद होंठों से जुदाई का वो दर्द जाने तुम कैसे कह गई,
अब तक हैरान हूँ मैंने इतनी बड़ी बेवफ़ाई इतनी वफ़ा से तुम कैसे कर गई.....

हर शाम मयकदे में तेरे नाम एक जाम होता है,
हाथों से झटक़ न जाए, लबों से थामा होता है........
तू कहीं बेवफ़ा के नाम से मशहूर न हो जाए......
इसलिए ये दीवाना रोज़ शराबी के नाम से बदनाम होता है.....