तेरे हाथों के लिखे वो अध-जले खत ....
जिनका आखिरी पैगाम भी मैं पढ़ नहीं पाया
उनका पूरा जलना बाकी था.....
ऐसे तो तेरी बहुत तस्वीरें बहा चुका था..
आंखों में बसी हुई.. तेरी तस्वीर को आंसुओं से बहाना बाकी था.....
कहीं न कहीं लगता है... खत्म हो के भी खत्म न हो पाया..
वो तेरा मेरा रिश्ता बाकी था....
कोई शिकायत न कोई उम्मीद तुमसे रहेगी ...
ना तुम मुझे वो प्यार दे पाई जिस काबिल मैं था...
ना तुम वो प्यार समझ पाई जिसे पे तुम्हारा हक़ था...
बस एक यही टीस उम्र भर रहेगी.....
कुछ उलझे हुए ख़याल हैं,
कुछ बिखरी हुई ज़िंदगी,
थोड़ी ठहरी रुकी भी है.....
पर लगता है जैसे हर ठहराव
हर पड़ाव अंदेशा लिए हुए,
कुछ नए रस्तों का... नई मंज़िलों का...
हर सहर हर गली की खाक छान मारी...
पर उनका कुछ पता न मिला,
तन्हाई में तकरार करते रहे...
वो ख्वाबों में आकर बोले.....
दिल में बसने वालों के पते हुआ नहीं करते....
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