Tuesday, April 5, 2011

एक अक्स

एक अक्स है भीड़ में तन्हाई में जिसे ढूंढता हूँ,

जाने क्यों अब महरूम हूँ जिसे से.....

मिलेगा या नहीं ये भी नहीं जानता हूँ...

बस एक तलाश है......

लगता है बहुत पहले बड़ा करीब था अब क्यों जुदा है ये जानता नहीं....

कब बिछड़े थे ये भी कुछ धुंधला सा है....

आज जब पलट के देखा तो वो गुमशुदा था......

जिसके हर पल मेरे साथ होने का यकीन था मुझको.....

गहराई से सोचा तो समझ आया मेरा वजूद मुझसे खफा है....

खुद से खुद को पाने की ये जुस्तजू है.....आरज़ू है...

3 comments:

Unknown said...

MAST

piyush-agrawal said...

Kabhi gaharayee se likha hai.. 1 - 2 baar aur padna padega..

Sandeep said...

Very nice kalam.... !!!