एक अक्स है भीड़ में तन्हाई में जिसे ढूंढता हूँ,
जाने क्यों अब महरूम हूँ जिसे से.....
मिलेगा या नहीं ये भी नहीं जानता हूँ...
बस एक तलाश है......
लगता है बहुत पहले बड़ा करीब था अब क्यों जुदा है ये जानता नहीं....
कब बिछड़े थे ये भी कुछ धुंधला सा है....
आज जब पलट के देखा तो वो गुमशुदा था......
जिसके हर पल मेरे साथ होने का यकीन था मुझको.....
गहराई से सोचा तो समझ आया मेरा वजूद मुझसे खफा है....
खुद से खुद को पाने की ये जुस्तजू है.....आरज़ू है...
3 comments:
MAST
Kabhi gaharayee se likha hai.. 1 - 2 baar aur padna padega..
Very nice kalam.... !!!
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