Date 28/08/2018
बड़े बड़े अरमान बड़े बड़े सपने ले के ,
अपना घर सारे रिश्ते नाते सब पीछे छोड़
निकला था कुछ कमाने ।
आज पलट के देखता हूँ तो लगता है
कुछ कमाने की ये कीमत चुकाई है मैंने ।
जाने क्या क्या गवाया है मैंने ।
जिन अपनों की खुशी के लिए सब कुछ गवाया
वो अपने ऐसे रूठे की वो कभी खुश ना हुए ।
रिश्ते थे पर पहले जैसी बात नही थी,
जब दुख था , सब साथ थे
सुख में सब एकांकी हो गए ।
जो घर था अब मेरे लिए एक सराय हो गया
जाने के पहले आने की तारीख तय होती गई।
जो बचपन की दोस्ती थी,
अब बचपन में ही सिमट के रह गयी ।
देखते देखते ज़िन्दगी इतने आगे ले गयी,
की मुड़ के देखे मुदत हो गयी ।
खुल के जीते जी, जाने कब बक्से में बंद हो गई ।
पहले गैरो के बीच भी अपनापन था,
अब अपनों में भी मुहाजिर कहलाने लगे ।
एक उम्र लगाई जिसे बनाने में,
एक घड़ी लगी उसको उजाड़ने में ।
ज़िन्दगी है कि छलावा जो नही मांगता वो मेरा हुआ
जो बिन मांगे मेरा था वो पराया हो गया ।
आज कीमत तो अदा कर दु वो पाने के लिए जो गवाया है , पर वो सब अब अनमोल हो गया ।
हर चीज़ को पकड़ने की बहुत कोशिश की,
पर हर चीज़ सूखी रेत की तरह हथेलियों से फिसलती गई ।
किसी पे कोई अधिकार नही रहा, कोई मनाने नही आएगा इसलिए रूठना भूल गए ।
कमाते कमाते इतने बदल गए कि आईने में खुद को देख के चौकने लग गए ।
भरे बाजार बोली लगती गयी, हम बिकते रहे और खरीदे भी नही गए ।
कहने सुनने को बहुत कुछ था , कोई दिल पे हाथ रख देता तो आंखे छलक जाती,
किसी ने दिल टटोला नहीं और हम मुस्कुराते रह गए ।
बहुत कुछ खाली था , जाने क्या क्या भरते गए।
बुरा किसी का चाहा नही , भला किसी का कर नही गए ।
मन्नत मांगी कि सब खुश रहे, मन्नत अधूरी रह गयी ।
खाली हाथ घर से निकले थे, खाली हाथ ही रह गए।
ज़िन्दगी के बहीखाते में नुकसान ज्यादा कर गए ।
---- राज
बड़े बड़े अरमान बड़े बड़े सपने ले के ,
अपना घर सारे रिश्ते नाते सब पीछे छोड़
निकला था कुछ कमाने ।
आज पलट के देखता हूँ तो लगता है
कुछ कमाने की ये कीमत चुकाई है मैंने ।
जाने क्या क्या गवाया है मैंने ।
जिन अपनों की खुशी के लिए सब कुछ गवाया
वो अपने ऐसे रूठे की वो कभी खुश ना हुए ।
रिश्ते थे पर पहले जैसी बात नही थी,
जब दुख था , सब साथ थे
सुख में सब एकांकी हो गए ।
जो घर था अब मेरे लिए एक सराय हो गया
जाने के पहले आने की तारीख तय होती गई।
जो बचपन की दोस्ती थी,
अब बचपन में ही सिमट के रह गयी ।
देखते देखते ज़िन्दगी इतने आगे ले गयी,
की मुड़ के देखे मुदत हो गयी ।
खुल के जीते जी, जाने कब बक्से में बंद हो गई ।
पहले गैरो के बीच भी अपनापन था,
अब अपनों में भी मुहाजिर कहलाने लगे ।
एक उम्र लगाई जिसे बनाने में,
एक घड़ी लगी उसको उजाड़ने में ।
ज़िन्दगी है कि छलावा जो नही मांगता वो मेरा हुआ
जो बिन मांगे मेरा था वो पराया हो गया ।
आज कीमत तो अदा कर दु वो पाने के लिए जो गवाया है , पर वो सब अब अनमोल हो गया ।
हर चीज़ को पकड़ने की बहुत कोशिश की,
पर हर चीज़ सूखी रेत की तरह हथेलियों से फिसलती गई ।
किसी पे कोई अधिकार नही रहा, कोई मनाने नही आएगा इसलिए रूठना भूल गए ।
कमाते कमाते इतने बदल गए कि आईने में खुद को देख के चौकने लग गए ।
भरे बाजार बोली लगती गयी, हम बिकते रहे और खरीदे भी नही गए ।
कहने सुनने को बहुत कुछ था , कोई दिल पे हाथ रख देता तो आंखे छलक जाती,
किसी ने दिल टटोला नहीं और हम मुस्कुराते रह गए ।
बहुत कुछ खाली था , जाने क्या क्या भरते गए।
बुरा किसी का चाहा नही , भला किसी का कर नही गए ।
मन्नत मांगी कि सब खुश रहे, मन्नत अधूरी रह गयी ।
खाली हाथ घर से निकले थे, खाली हाथ ही रह गए।
ज़िन्दगी के बहीखाते में नुकसान ज्यादा कर गए ।
---- राज
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