तेरी गलियों की धुल जिस ने कभी तुझे छुआ था उस से अपने सीने में समेटे हुए लौटा था
तेरे शहर की हवाओ से तेरी महक चुरा के लौटा था
तेरे शहर से तेरी एक झलक अपनी आँखों अपने तस्वुर में बसा के लौटा था
तेरे शहर तेरी गलियों से अपनी मोह्बत के किस्से कानो पे रख ले लौटा था
लौटते लौटते अपना दिल तेरे दर पे छोड़ आया था
हो सके तो अपनी कुछ खाई हुई कसमें याद कर लेना ,
तुम्हारे दर पे रख हुए तनहा दिल को उस के दिल से मिला देना
इसे मेरी इंतेज़ा समझ पूरा कर देना
क्यूँ की मैं अभी अभी तेरी मेरी उस दीवानी मोह्बत की रवानगी के दौर से होकर लौटा था !
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