मेरी सलामती के लिए सजदे में दुआएं न मांगती
मुझसे पहेले सायद तुम ये जान चुकी थी की हम मोहबत तो कर सकते है लेकिन एक दुसरे के कभी हो नहीं सकते
तुम्हारी मन्नतो सजदो का कुछ असर मुझ पे भी हो गया था मैं भी कुछ कुछ तुम्हारे दिल-ओ -दिमाग में चलने वाले खयालो को समझने लगा था
तुम्हे किसी और की होते देखना इतना आसान ना था ,जानता था मुझ से ज्यादा तकलीफ तुम्हे हो रही थी
जिसे तुम हंस के सह रही थी , लेकिन तुम्हारे उस दर्द को महसूस कर सीने में मेरे भी दर्द भर रहा था
यकीन हो चला था की अब तुम्हारे जाने के बाद ज़िन्दगी आसान तो न होगी
पर तुम्हारे बिना मैं भी पुरे ईमान से मोहबत के मजहब को निभा रहा था
अब मैं हर दरगाह पे जा के तुम्हारे लिए मन्नत का धागा बांध रहा था
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